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संसार में सबसे बढ़ कर दयनीय कौन है ? जो धनवान होकर भी कंजूस है। हिन्दी अनुवाद सहित ॐ
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* २८३ नई नई योजनाओं से चारों ओर राज्य का भारी विकास और जनता का उपकार हुआ । कुंवर ने शिक्षा विभाग, व्यापारिक प्रगति, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ आध्यात्मिक विचारधारा को मी न भुलाया ।
नगर में स्थान स्थान पर प्रत्येक मन्दिरों में बह ही समारोह के साथ अठाई उत्सव और श्रीसिद्धचक्र की पूजन प्रभावनाएं होती। आश्विन शुक्ला और चैत्र शुक्ला में उनके साथ हजारों स्त्री-पुरुष बड़ी श्रद्धा-भक्ति से श्रीसिद्धचक्र-ओली करते । अब तो जनता के हृदय में यह दृड़ श्रद्धा बैठ गई थी कि “मानव के रूठे भाग्य को चमकाने का श्रीसिद्धचक्र की स-विधि आराधना ही" एक अचूक उपाय है।
श्रीपाल कुवर का स्थापत्य-शिल्पकला के विकास की ओर भी अच्छा लक्ष्य था । उन्होंने दूर दूर से अच्छे निपुण कलाकारों को बुलाकर कई सुन्दर गगनचुंबी सौधशिखरी नूतन जिन मन्दिर बनवाए, कई प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया, उनकी प्रतिष्ठाएं करवाई । मन्दिरों के शिखरों पर पवन से उड़ती ध्वजाएं तो आकाश से बातें कर रही थी कि हम कहीं चन्द्र की सुधा-किरणों के आस्वादन से वंचित न रह जायं । लहराती ध्वजाए अपने हाथों को लंबा कर कह रही थी कि
रे मानव ! तू अपने इस चंचल जीवन का गर्व न कर, जीवन क्षण-पल घड़ियों में कण-कण विखर कर अवश बह रहा है । तू अति शीघ्र अपने इस प्रमादी जीवन का मोड़ बदल दे, जिन समान जिनेन्द्र प्रतिमा के दर्शन ही तो तेरा सत्य स्वरूप है । तू सुख की खोज में बाहर न भटक, आत्मचिंतन कर । वीतराग दशा का प्रमुख साधन है, वीतराग दर्शन ।
नाम ही भूल गये :-श्रीपालकुंबर की राजसभा में सदा अतिथि-सत्कार की धूम मची रहती थी, कुंवर बड़े प्रेम और श्रद्धा-भक्ति से छोटे-बड़े अतिथि को उनकी आवश्यकतानुसार वस्त्र, पात्र, औषध और भोजनादि प्रदान कर उनका आदर-सत्कार करते थे, उनके द्वार से कदापि कोई व्यक्ति खाली हाथ न लौटता था। सच है गृहस्थ के द्वार से किसी अतिथि का रीते हाथ लौट जाना बड़ा अमंगल है। इसी कारण कुंवर की कीर्ति बड़े वेग से देश के कोने कोने में फैल गई। नगर में बड़े-बड़े स्त्रीपुरुष अपने घरों और चोपालो में बैठ बातें किया करते, सचमुच कुंबर की दानवीरता से लोग राजा कर्ण का नाम ही भूल गए । अर्थात उन्हें अनेक युगों के बाद जनता के हृदय के बन्धन से अब सदा के लिये छुटकारा मिल गया | इस प्रकार के जनता का न्याय भी ऐसा करते थे कि उनके उचित न्याय से लोगों को उनकी राजा