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शरीर को भस्म कर देने के लिये क्रोध से बढ़ कर कोई चीज नहीं। हिन्दी अनुवाद सहित RRRRRRRRR R***२८१
अभिनन्दन:-श्रीपालकुंधर भी अपने भजन-चल से इन्द्र से चमक रहे थे । उनके दल बल और स्वागत के ठाट-पाट से चंपानगरी सुरपरी ( अलका) सी देख पड़ती थी। राजमहल के द्वार पर महिलाओं ने अपने कमल-से कोमल हार्थों से राजा-रानी की आरती उतारी और उन्हें मणि-मुक्तओं से बधाकर अन्दर प्रवेश कराया । श्रीपालकुंबरप्रिय उपस्थित सज्जनो ! माताओ एवं पहिनी ! आज वर्षों के बाद आप लोगों से मिलकर मेरा हृदय फूला नहीं समाता है । आज मैं एक अपार आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ | संभव है, मेरे पिताश्री के स्वर्गवास के बाद आपको अनेक संकटों का सामना करना पड़ा होगा, फिर भी आज आपने मेरा तन-धम-धन से भव्य स्वागत कर, एक आदर्श स्वामीभक्ति का परिचय दिया। इसके लिये मैं आपका हृदय से बड़ा आभारी हूँ, अभिनन्दन करता हूँ ।
नगर के उच्चाधिकारी, अमीर, उमराव, जनता, श्रीपालकुंचर का विनम्र स्वभाव, प्रतिभा और प्रखर बुद्धि देख मंत्र मुग्ध हो गए। उन्होंने बड़े ही समारोह के साथ फिर से दुबारा कुंवर का राज्याभिषेक कर उन्हें सम्राट पद से अलंकृत कर, रानी मयणासुन्दरी को पट्टरानीपद प्रदान किया | शेष रानियों को भी क्रमशः बहुत से अधिकार दे उन्हें सम्मानित किया । कुंवर ने एक दिन कहा था कि “करशु सकल विशेष " । सचमुच आज प्रत्यक्ष उनकी प्रतिज्ञा सफल हुई। एक मंत्री भतिसागर रे लाल, तीन धवल तणा जे मित्तरे सो.।। ए चारे मंत्री पवित्तरे सो. श्रीपाल करे शुभ चित्तरे सो.। ए तो तेजे हुओ आदित्त रे सो. खरचे बहुलो निज वित्तरे सो. जय०॥६॥ कोसंबी नयरी थकी रे लाल, तेड़ाब्यो धवलनो पुत्तरे सो. । तेनु नाम विमल छे युत रे सो. तेह सेठ को सु मुहूत्त रे सो.। सोवन पट्ट बंध संयुन रे सो. कीधा कोष ते अखय सुगुत्त रे सो. जय० ॥७॥
श्रीपालकुंवर ने मंत्रीमंडल में अपने पुराने मंत्री मतिसागर और धवलसेठ को सद्बुद्धि देने वाले उनके तीन मित्रों को ही स्थान दिया । तथा कोसंबीनगर से धवलसेठ के पुत्र विमलशाह को पुलाकर उसे बड़े ही समारोह के साथ शुभ मुहूर्त में बहुमूल्य सिरोपाव दे, नगरसेठ बनाया । विमलशाह ने भी बड़ी बुद्धिमानी से कुंवर के विपुल धन की अभिवृद्धि और संरक्षण करने में कमी न रखी ।