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________________ आसक्ति बध का कारण है, अनासक्ति मोक्ष का । हिन्दी अनुवाद सहित A-SANTARAKHARASHTRA २७९ हमारे सामने है:-राजर्षि अजितसेन का आशीर्वाद ( धर्मलाभ ) ले डेरे पर लौटते समय सम्राट् श्रीपालकुवर का हृदय भर आया । वे अपने काका के जीवन में अचानक एक अनोखा परिवर्तन देख मुग्ध हो गये। उन्होंने एक शुभ मुहूर्त में अपने चचेरे भाई गजगति को अनेक गांवों का अधिकार दे उसे राजर्षि अजितसेन के राज्यसिंहासन पर स्थापित कर दिया । कुंवर की महान उदारता देख जनता चकित हो उनकी भूरिभूरि प्रशंसा करने लगी । " वाह रे वाह ! बुराई का बदला भलाई से देने वाले नर विरले ही तो होते हैं।" आज हम अपने बिछुड़े सम्राट् को पाकर निहाले हो गये। आज रानी मयणासुन्दरी अपने पति के शब्दों की "भूज बले लेखमी लही करशु सकल विशेष रे" मूर्त रूप में देख वह फली न समाई। “धन्य है। प्राणनाथ ! श्री सिद्धचक्र का प्रत्यक्ष चमत्कार हमारे सामने है। चौथा खण्ड - छट्ठी ढाल (बलद भला छे सोरठी रे लाल ) विजयकरी श्रोपालजी रे लाल, चंपानगरीये करे प्रवेश रे सोभागी । टाल्या लोकना सकल क्लेश रे, सौ. चंगानगरी ते बनी सु-विशेष ॥ शणगार्या हाट अशेष रे सो० पटकले छाया प्रदेश रे सो० जय जय भणे नर नारियो रे लाल ||१|| फरके ध्वज तिहाँ चिहं दिशे रे लाल, पग पग नाटारंभ रे सो. । मांड्या ते सोवन थम रे सो. गावे गोरी आनन्द रे सो.॥ जेणे रूपे जीती छे रंभ रे सो. बंभ ने पण होय अचंभ रे सो. ज. ॥२॥ सुरपुरी झंपा जेकरी रे लाल चंपा हुई तेण बार रे सो. । मदमोद समुद्रमा सार रे सा. फल्यो साहस मानु उदार रे सो. ।। तिहां आव्यो हरि अवतार रे सा. श्रीपाल ते कुल उद्धार रे सो. ज. रे ॥३॥ मोनीय थाल भी करी रे लाल वधावे वर नार रे सो. ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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