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________________ सर्वोत्तम मार्गदर्शक, अपनी आत्मा है। जो अनासक्त है, वह मुक्त है। २७८RASHREENAK ARAN श्रीपाल रास महामुनि बन चुके हैं। आप ऐसे तो द्रव्य से छठे प्रमत्त गुणस्थान पर हैं किन्तु आपकी परम पवित्र विशुद्ध विचारधारा प्रायः अधिकतर सातवें अप्रमत्त गुणस्थान का ही स्पर्श करती रहती है । गुरुदेव गृहस्थ जीवन में आप मेरे आदरणीय काका थे, अब तो आप जगत् पूज्य परमतारक मुनि बन चुके हैं, इससे बढ़कर और हमारे परिवार का सौभाग्य और प्रसन्नता क्या होगी? धन्य है ! धन्य है। गुरुदेव आपको हमारा त्रिकाल कोटि-कोटि वंदन हो। आपने हमारा कुल तार दिया। श्रीमान् उपाध्याय यशोविजयजी महाराज कहते हैं कि यह श्रीपाल-रास के चौथे खण्ड की पांचवी ढाल सु-मधुर राग में संपूर्ण हुई । पाठक और श्रोतागण श्रीपालकुंवर के समान, ही साधु मुनिराजों की महिमा के गुणगान कर ऋद्धि सिद्ध विनय और सुयश प्राप्त करें। दोहा अजिनसेन मुनि इम थुणी, तेहने पाट विशाल । तस अंजन गज गति, सुमति थापे नृप श्रीपाल ॥ कारन कीयां आपणां, आरज ने सुख दीध | श्रीपाले बल पुण्य ने, जे बोल्यु ते कोध ॥ ऋजुमन्त्र :-जो विचार भूत और भविष्यत् काल का विचार न करके सिर्फ वतमान को ही ग्रहण करता है वह ऋजुसूत्र नय है। जसे कि:-एक लड़का अपने मां-बाप की सेवा करे, तब तो वह पुत्र है। अन्यथा नहीं। इसके दो भेद हैं, सूक्ष्म और स्थूल । शब्दः--व्याकरण संबंधी लिग संख्या आदि दोषों को दूर करने वाला मान-वह शब्द नय हैं । जैसे पुष्प, तारक, नक्षत्र । समभिरूदा-जो विचार, शब्द की व्युत्पत्ति के आधार पर अर्थ भेद की कल्पना करता है वह समभिरूढ़ नय है। जैसे कि:--राजा, नृप, भूपति आदि । एवंभता-जो विचार शब्द से फलित होने वाले अर्थ के घटने पर ही उस वस्तु को उसके समान है, अन्यथा नहीं यह एवंभूत नय है। जैसे कि:-मोक्ष जाने के बाद ही मानव को __सिद्ध मानना-एवंभूत नय है। सप्त-नय का विस्तृत वर्णन श्री अनुयोग द्वार सूत्र, बागमसार, नय यकसार, तत्त्वाथधिगम सूत्र आदि ग्रंथ देखियेगा ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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