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जो इन्द्रियों का दास है, वह स्वतंत्र नहीं है। हिन्दी अनुवाद माहित *- *-*-*-*-*-* कर २५७
संक्षेप में नय के दो भेद हैं । द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय | इनके सात भेद हैं, (१) नैगम' (२) संग्रह (३) व्यवहार (४) ऋजुसूत्र (५) शब्द (६) समभिरूर और (७) एवंभूत-नय ।
सम्राट् श्रीपाल कुंवरने राजर्षि अजितसेन से कहा-धन्य है, गुरुदेव ! आपने नयविज्ञान के अनूठे तत्वज्ञान से अपनी आत्मा को पावन कर, आप अब मोक्ष के अधिकारी बन गये हैं।
आत्मद्रष्टा-योगीः-- गुरुदेव ! आत्मा और अहं का अन्तर जानना ही सबसे बड़ा भेद विज्ञान है। आप इस विज्ञान के एक अनुभवी तत्वदर्शक, गीतार्थ आत्मद्रप्पा-योगीराज हैं। आप के हृदय में शान्तरस का एक झरना बह रहा है । आपने शांतरस से चारित्र उद्यान को हरा-भरा कर दिया है, आपके प्रबल पुण्योदय की लताएं चारों ओर अपनी मीठी सुवास फैला रही हैं, सच है, यदि आपकी हृदयवाटिका में कषाय अग्नि होती
तो यह चारित्र फुलबाड़ी कमी से सूख जाती। बेचारी तृष्णा पिशाचनी की तो स्वप्न में ___ भी आपके पुण्य दर्शन दुर्लभ है। आपकी परम पवित्र उज्यल मानसिक विचारधारा हमारे चर्म
चक्षुओं से परे है । आपकी महिमा अपार है । आपको यदि मैं इन्द्र की उपमा भी तो कैसे दूं? इन्द्रमहाराज तो भोगी, इन्द्रियों के दास, अव्रती हैं। आप अपनी इन्द्रियों के स्वामी, महावती वीतराग महायोगीन्द्र हैं । आप महाभाग्यशाली के परम मनोहर सौम्य प्रशांत अति सुन्दर बीतराग चांद के मुखड़े को बार बार निहारने पर भी मेरे नयन तृप्त नहीं हो पाते हैं | आप कुमति डायन को निरस्त कर जीवनमुक्त, और द्रव्य भाव से निग्रंथ
१ नेगम :--जा विचार सकल्पनात्मक लौकिक रूढ़ि या लौकिक संस्कार के अनुसरण में से पंदा होता है वह नंगम नय है। जैसे कि:-एक किसान पाली (धान्य नापने का एक पात्र) बनाने की इच्छा से जंगल में लकड़ी लेने गया। मार्ग में उसके एक मित्र ने उससे पूछा, रामु भैया ! कहां चले ? उसने कहा, पाली लेने जा रहा हूँ। इस समय रामु के पास न लकड़ी है और न अभी पाली ही बनी है; संकल्प मात्र को ग्रहण करे उमे उसे नंगाम-नय कहते हैं । इसके तीन भेद हैंभूत, भविष्य और वर्तमान ।
संग्रह :-जो विचार भिन्न-भिन्न प्रकार ही वस्तुओं को तथा अनेक व्यक्तियों को किसो भी सामान्य तत्त्व के आधार पर एक रूप में संकलित कर लेता है, वह संग्रह नय है। जैसे कि:-द्रव्य, घट, विद्यार्थी। इसके दो भेद हैं, मान्य और विशेष ।
___ व्यवहार :--जो विचार सामान्य तत्त्व के आधार पर एक रूप में संकलित वस्तुओं का व्यवहारिक प्रयोजन के अनुसार विभाग करता है वह व्यवहार नय है। जैसे कि :--अपने एक वस्त्रभंडार से केवल वस्त्र की मांग को । व्यवस्थापकजी आपको क्या देंगे ? कुछ भी नहीं। बाप उनसे स्पष्ट कहियेगा कि श्रीमान्जी ! आप हमें एक सफेद खादी की टोपी दें । यहो व्यवहार नय है । इसके छे भेद हैं-शुख, अशुद्ध, शुभ, अशुभ, उपचरित और अनुपचरित।