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________________ यदि तुम सबका शुम चाहोगे, कभी न अशुभ तुमारा होगा। वरद हस्त प्रभुका पाओगे ॥ हिन्दी अनुवाद सहित CAR R IERICA २७३ नाव से लोभ महोदधि के उस पार पहुंचे सुर-असुर महायोद्धाओं से अजेय कामदेव को आपने ब्रह्मचर्यास्त्र से निरस्त कर उसे ऐसा पछाड़ा कि उसके अंग-प्रत्यंगो का पता तक न लगा, इसलिये तो कामदेव को अनंग कहते हैं। सिंह अपनी गर्जना से मतवाले हाथियों की बोलती बंद कर देता है। किन्तु अष्टापद के सामने उसे बकरी सदृश दूम दबा कर भागना कठिन हो जाता है। इसी प्रकार आपके दृढ़ मनोवल के आगे कामदेव की एक न चली, उसके हाथ पैर ठण्डे पड़ गये । रति अरति निवारी भय पण भारी. विश्वनौ तारूजी । ते मन नवि धरियो ते हज डरियो, तुज्जथो वारुंजी ॥ ते तजिय दुगंछा, शी तुज बंछा विश्वनो तारूजी । ते पुग्गल अप्पा बिहुँ पस्खे थप्पा लक्षणे वारूंजी ।।५।। परिसहनी फौजे तू निज मोजे विश्वनो तारूजी । नवि भागो लागो रण जिम नागो एकलो वारूंजी ॥ उपसर्ग ने वर्गे तू अपवर्गे विश्नो तारूजी । चालतां नड़ियो तू नवि पड़ियो पाशमां वारूजी ॥६॥ दोय चीर उठता विषम व्रजंता विश्वनो तारुजी । धीरज पवि दंडे तेज प्रचंडे ताड़िया वारूजी ।। नई धारण तलां पार उतरतां, विश्वनौ तारूजी । नवि मारग लेखा विगत विशेषा देखिये वारुंजी ।।७।। विसजित करना जिससे जानोत्पत्ति न हो और किसी को घृणा या कष्ट भो न हो । २ तीन गुप्तिः इन्द्रियां और मन पर संयम रखन। अर्थात उन्हें असत् प्रवृत्ति से हटा कर आत्माभिमुख कर लेना । मनोगुप्तिः--मन को अशुभ बुरे सकल्पों से अलग करना । वचनगुप्तिःअसत्य, कर्कश, कठोर, कष्ट जनक अथवा अहितकर भाषा के प्रयोग को रोकना । कायगति:शरीर को असन्त व्यापारों से निवृत्त करके शुभ व्यापार में लगाना; उठने, बैठने, सोने, जागने आदि शारीरिक क्रियाओं में सावधानी रखना।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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