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राजपाट सुख देवें कैसे, खटका जहां मरने का,। पहले से ही क्यों न त्याग दे, जो है अलजने का । २७२ FARAKHA R KAR श्रीपाल रास
माया विषवेली मूल उखेड़ी, विश्वनो तारूजी । ते अज्जव कीले सहव सलीले सामटी वारूंजी ॥२॥ मूर्छा जल भरियो गहन गुहरियो, विश्वनो तारूजी । ते तरियो दरियो मृत्ति तरीशु लोभनो वारुंजी ॥ ए चार कपाश भव तरु पाया, विश्वनो तारूजा । बहुभेदे खेदे सहित निकंदी, तू जयो वारूंजी ॥३॥ कंदर्प दर्प सवि सुर जीत्या, विश्वनो तारूजी । ते ते इक धक्के विक्रम मोडियो वारुंजी ॥ हरि नादे भाजे गज नवि गाजे, विश्वनो तारूजी । अष्टापद आगल, ते पण छागल, सारिखो वारूंजी ।।४।।
छक्के छड़ा दिये :-राजर्षि अजितसेन पांच' समिति, तीन गुप्ति की विशुद्ध साधना में लीन थे । श्रीपालकुवर सपरिवार उनसे दर्शन कर आनंदविभोर हो गये। कुंवर ने सविधि गुरुवंदन करके कहा-धन्य हैं तरण तारण गुरुदेव ! “संत मुनि के दर्शन के नीच गोत्र, अशुभ कर्मों का आय और महान् पुण्य का धंध होता है । मुनि तीर्थ स्वरूप हैं। तीर्थदर्शन का फल तो न मालूम किस भव में मिलेगा। किन्तु संत-दर्शन अति शीघ्र सुसंस्कार, सद्बुद्धि और सद्गति प्रदान करते हैं |" आपने उपशम की तलवार से क्रोध के छक्के छुड़ा दिये, अहंकार दमन के बच से जाति, बल, वैभव, कुल, ज्ञान, तप, लाभ और रूप-सौंदर्य इन आठ महामद पर्वतोंको चूर-चूर कर दिया; सरल स्वभाव की कुल्हाड़ी से विषैली माया-लता को जड़मूल से साफ कर दी; आप निस्पृहा की
पांच समितिः-पाप से बचने के लिए मन की प्रशस्त एकाग्रता, समिति कहलाती है। (१) समिति.-जीबों की रक्षा के लिये सावधानी के साथ, चार हाथ आगे की भूमि देख कर चलना । (२) भाषा : मितिः-हित, मित, मधुर और सत्य भाषा बोलना । (३) एषणा समिति:-निर्दोष एवं शुद्ध आहार ग्रहण करना । आदान निक्षेपण समिति-किसी भी वस्तु को सावधानी के साथ उठाना या रखना, जिससे किसी जीव-जन्तु का घात न हो जाय । परिष्ठानिका समिति-मल-मूत्र आदि को ऐसे स्थान पर