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________________ भवसागर से तारन हारी, विचार नौका ही है। सुत-धन-दारा बांधव आदिक, साधन अन्य नहीं है ॥ हिन्दी अनुवाद सहित ७ *%%%%* २६३ सन्मुख आवे यदि काल कभी, फिर भी वह भय नहीं खाता है। तीनों लोकों में वहीं वीर, अमरत्व परम पद पाता है || एक युवती ने वीर सैनिक से कहा- प्राणनाथ ! स्वामीभक्ति की अग्नि परीक्षा में विरले ही मानव खरे उतरते हैं। क्षत्रियों के लिये तो बर्बी, भाले और नंगी चमकती तलवारों के सामने अपना सीना लड़ाना एक खिलवाड़ है। आप निर्भय हो समरभूमि में कूद पड़े । कहीं ऐसा न हो कि आप मेरे कटाक्षों का स्मरण कर इस दासी के मोह में शत्रओं को पीठ नता है वे वीर हैं जो वचन से टल न सकें कभी । वे वोर हैं जो शत्रु को, पीठ न दे प्रण वीर हैं जो प्राण की चिंता नहीं प्रण पूर्ति में शरीर त्याग, शांति से कभी || करें । मरें ॥ प्राणेश ! मैं आपको विजयी देख आपका अधर रस से स्वागत करूंगी। यदि आप वीरगति को प्राप्त हुए तो यह दासी निश्चित ही अग्निस्नान कर, आपके साथ साथ स्वर्गलोक में सुधा-पान का आस्वादन लेगी । सुबह अन्धकार को चीरते हुए सूर्यदेव ने समरभूमि की ओर आँख उठाकर देखा तो क्रोध से उनका मुंह लाल हो गया। राजा अजितसेन की प्रत्यक्ष हठधर्मी, : नरसंहार का उपक्रम देख उनकी अन्तर आत्मा तिलमिला उठी ." धोखेबाजी महापाप है" । अत्र वे उपर से नीचे की ओर झांक झांक कर देख रहे हैं कि विजयश्री किसे वरती है । वीरछन्द और कड़खा राग में एक अनूठी उत्तेजक शक्ति है । भाट चारण लोग प्रयोग से मृतप्राय सीमा निर्धारण ) इस कला के गुरु हैं । वे समय समय पर अपनी स्वरलहरी के योद्धाओं के तन में प्राण फूंक देते हैं। दो दलों के बीच रण- स्तंभ लगते ही, रण-भेरी बज उठी । अजितसेन के वीर सैनिक कड़वा राम कान पर पड़ते ही बड़े वेग से श्रीपालकुंवर की सेना पर टूट पड़े । ( नीर जिम तीर वरसे तदा योध धन, संचरे वग परे धवल नेजा । गाज दल साज ऋतु आई पाउस तणों, बीज जिम कुंत चमके सतेज ॥ चं ॥ ९ ॥ भंड ब्रह्मांड शत खंड जे करि शके, उच्छले तेहवा नाल गोला । वरसता अग्नि रणमगन रोषे भर्या, मानुए यमतणा नयण गोलाचं. ॥ १० ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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