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आत्मा ही केयल सच्चा सुख समचा है सोई । आत्म-शान बिन कहीं कभी भो, सुखो न कोई होई ।। ___२६२NARREAR RAN श्रीपाल रास कोई जननी कहे जनक मत लाजवे, कोई कहे माहरु बिरुद राखे। जनक पति पुत्र तिहुं वीरजस उजला,सोहिवन जगत मां अणिय राखे।चं.18 कोई रमणां कहे इसिय तु सहिश किम, समर कस्वाल शर कुंत धारा । नयण बाणेहण्योतुज्ज में वश कियो, तिहां नधीरज रह्यो कर विचारा ॥.||५|| कोई कहे माहरो मोह तुं मत करे, भरण जीवन तुझन पीठ छाई अधररस अमृतरस दोय तुझसुलभ छे,जगत जय जय हेतु हो अचल खांडाचं.15 | इम अधिक कौतुके वीर रस जागते, लागते वचन हुआ सुभट ताता। सुरपण ऋर हुई तिमिर दल खंडवा पूर्व दिशि दाखवे किरण राता ॥ च.॥७॥ रोपी रण थंभ संरंभ करि अति घणो, दोई दल सुभट तव सबल जूझे । भूमिने भोगता जोई निज योग्यता, अमल आरोगता रण न मुझे ॥चं.॥८॥
अभिशाप है :-सनसनाती हवा चम्पानगर के इस छोर से उस छोर तक चक्कर काट रही थी। देखो ! उस एक ऊंचे टीले पर महाराजा श्रीपालकुवर की सेना का पड़ाव है। इधर अजितसेन भी चतुरंगिणी सेना के साथ समरभूमि में पहुंच गये हैं। भगवान ! भगवान !! नगर का न मालूम क्या हाल होगा । रक्त की नदी बहे बिना न रहेगी। भय से नगर में चूहेदानी में फंसे चूहों की तरह चारों ओर भग-दौड़ मच गई। जनता के प्राण मुट्ठी में आ रहे हैं।
एक ने कहा--" चोरी और सीना जोरी ।" पराई धरोहर को हड़प कर समरभूमि __ में पैर रखना मानवता का अभिशाप है । सत की नाव तिरेगी ।
क्रोध से मुंह लाल हो गया:-सदा भवानी दाहिनी के मंगल घोष से आकास गूंज उठा । वीर योद्धा लोग कसुंबा (अफीम) छान छान कर अपने हथियरों का सिंदूर से पूजन करने लगे। वे अपनी लंबी मूछों पर बल देते हुए अपने अपने स्वामी की जय बोल रहे थे । चारों ओर से समरभूमि को समतल कर स्थान स्थान पर मोरचाबन्दी कर दी गई।
एक बुढिया ने एक वीर सैनिक के भाल पर तिलक कर उसकी आरती उतारी। फिर उसे आशीर्वाद दिया-बेटा ! इस महासमर में तुम्हारी विजय हो, मेरे लाल ! वीर प्रसता के दूध को न लजाना ।
क्षत्रिका बालक होकर जो, दुश्मन को पीठ दिखलाता है। अपयश पाकर वह दुनियां में, जीते जी मुरदा कहाता है ।।