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आन्मबोध कि प्राप्ति हुए बिन, दुःख ममूल न नाशे । जेसे राव के उदय हुए बिन, निशि तम नहीं विनाशे ॥ हिन्दी अनुवाद सहित
6 -4- २६१ भूला हुआ यदि सुबह का, आजाय शाम को । भूला नहीं कहा गया, उस बुद्धि निधान को ।। कुछ सोच लो विचार लो, संदेश को अति प्रेम से ।
है महत्त्व इस में आपका, यदि दें धरोहर प्रेम से ।। . नाथ ! मैने राजा अजितसेन को खट-मीठे चटपटे शब्दों से बहुत कुछ समझाया | फिर भी वे टस से मस न हुए। सच है, विनाश काल में मनुष्य की बुद्धि उसका साथ छोड़ देती है। अब वे समरभूमि में आ रहे हैं।
दूत के समाचार सुन, श्रीपालकुंवर ने मुस्करा कर कहा- अच्छा, काका अजितसेन रण-फाग खेलना चाहते हैं। कोई बात नहीं। गगनभेदी रणभेरियों से आकाश गुंज उठा । हजारों सैनिक अपने दल-बल के साथ चंपानगर की ओर चल पड़े। बात की बात में चंपानगर के पास नदी के निकट एक उचे टीले पर अपार शिविरों से पृथ्वी ढल गई । वीर योद्धाओं की भुजाएं फड़क उठीं ।
सम्राट अजितसेन ने भी अपने वीर योद्धाओं को ललकार कर कहा-वीरो! आगे चढ़ो, देखते क्या हो! इसी समय श्रीपाल की मुट्ठी भर सेना पर टूट पड़ो। वे अति शीघ्र अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ चंपानगर की नदी के तट पर आ पहुंचे ।
चौथा खण्ड - चौथी ढाल
(राग-कड़खा) चंग रण रंग मंगल हुआ अति घणा, भूरि रण तूर अवि दूर बाजे । कौतुकी लाख देखण मल्या देवता, नाम दुंदुभी तणे गयण गाजे ॥चं.॥१॥ उग्रता करण रणभूमि तिहाँ शोधिये, रोधिये अवधि करी शस्त्र पूजा । बोधिये सुभट कुल वंश शंसा करी, योधिये कवण तुज्ज दूजा ।। चं. ॥२॥ चरचिये चारु चंदन रसे सुभट तनु, अरचिये चंपके मुकुट सीसे । सोहिये हत्थ वर वीर वलये तथा, कल्पतरु परि बन्या सुभट दीसे ।।चं. ॥३॥