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________________ दिन के पीछे गत आय है, गत गयो दिन आया । सुख के पीछे दुःख आय त्यों, दुःख गया सुख आया । हिन्दी अनुवाद सहित CRIMARRICAHHATR I २५९ ठीकरा, कहां सुगंधित भात, कहाँ सड़ा धान्य, कहाँ मोतीचूर कहाँ सूखा टुकड़ा, कहाँ राम, कहाँ रावण, कहां सुंदर उद्यान, कहां उजड़ा वन, कहां सिंह, कहां बकरा, कहाँ अहिंसा, कहां हिंसा, कहां धर्म, कहां पाप, कहां सच, कहां झूठ, कहां दिन, कहां रात, यही बदला, राजकुमार श्रीपालकुंदर और आप श्रीमान् के भाग्य और पुरुषार्थ में है । " मेरा आप से अन्तिम यही अनुरोध है कि राजकुमार के सैनिक-दल के आगे आपका सैनिक-दल आटे में नमक जितना भी नहीं है। यदि आपको अपने प्राणों से कुछ मोह है तो आप अति शीघ्र नत मस्तक होकर चम्पा का राज्य महाराजाधिराज श्रीपालकुंवर को सौंप दें। नहीं तो अन्तिम परिणाम क्या होगा ? रणभूमि का आमंत्रण । बोली एम रह्य जब दूत, अजितसेन बोल्यो थई भूत राजा नहीं मले। कहजे तू तुझ नृपने एम, दूत पणानो जो छे प्रेम, रा. चम्पानगरीत राय, राजा नहीं भले ॥११॥ आदि मध्य अंते छे जाण, मधुर आम्ल कटु जेह प्रमाण, राजा नहीं भले । भोजन वचने सम परिणाम निणे चतुरमुख ताहरु नाम । राजा नहीं भले ॥१२॥ निज नहीं तेह अणारी कोउ,शत्रु भाव वहिये छे दोउ।ग. जीवतो मुक्यो। जाणी रे बाल, तेणे अमें निर्बल, सबल श्रीपाल । राजा नहीं मले ||१३|| निज जीवित ने हु नहीं रुठ, रूट्यो तस जमराय अपूठ । राजा नहीं मले। जेणे जगाव्यो सूतो सिंह, मुझ कोपे तस न रहे लीह। राजानहीं मले|१४॥ जस बल सायर साथु प्राय, जेहना बलते बीजा राय । गजा नहीं मले । तेहमाँ है बड़वानल जाण सवि ते सोधून करूं काण, रोजा नहीं मले।॥१५॥ कहेजे दृत तू वेगी जाई, आq ; तुझ पूठे धाई, राजा नहीं मले । बल परखीजे रण मैदान, खड़गनी पृथ्वी ने विद्यानुंदान: राजानहों मले ॥१६॥ चौथे खंडे बोजी ढाल, पूरण हुई ए सग बगाल; गजा नहीं मले। सिद्धचक्र गुण गावे जेह, विनय सुजस सुख पावे तेह; राजा नहीं मले ॥१७॥ मैं अभी आता हूँ :-राजदूत के शब्दों से सम्राट् अजितसेन के तन में आग लग गई । वे भड़क उठे, उन्होंने चिढ़कर कहा-चतुरमुख ! आप बोलने में बड़े चतुर हैं।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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