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सार तत्व का चितन कर रे, सारे स्वाद भुला दे। शेष शांत रस मात्र शेष रस, दूजे सभी गला दे । २५६ फ 952-ARCARE
श्रीपाल रास अरि कर गत जे नवि लिये, शक्ति छते पितृ रज्ज । लोक वल फोक तस, जिम शारद घन गज्ज |॥२॥ ए बल ए ऋद्धि ए सकल, सैन्य तणो विस्तार । शुं फलशे जो लेशो नहीं, से निज गज उदार ॥३॥ नृप कहे साचुं ते कडं, पण छे चार उपाय | सामे होय तो दण्ड श्यो, माकरे पण पिन जाय ॥४॥ अहो बुद्धि मंत्री भणे, दृत चतुरमुख नाम । भूप शिखावी मोकल्यो, पहोतो चंपा ठाम ||५||
हस्त-गत कर लें:-प्रधानमंत्री मतिसागर ने कहा-कुंवरजी ! जीवन भी एक समस्या है । "सब दिन सरीखे न होय" | एक दिन चंपा नगर से राजमाता कमलप्रभा आपको अपनी छाती से लगा, भयंकर अटवी में भागी थी। वह घटना याद आते ही मेरे रोमांच खड़े हो जाते, आँखों के सामने अन्धेरा छा जाता था, किन्तु आज आपका धवल सलोना चांद-सा मुख, विनम्र शांत-स्वभाव, बल-पराक्रम, निर्मल तर्क बुद्धि और अतुल वैभव देख मेरे हृदय की कली-कली खिल गई, नयन तृप्त हो गये । अब मेरा आप से यही एक विनम्र सादर अनुरोध है कि आप शीघ्र ही अपनी बपौती चम्पानगरी को अपने हस्तगत कर लें। यदि आप साधनसंपन्न होकर भी एक विश्वासघाती राजा अजितसेन को परास्त न करेंगे तो जनता आपको क्या कहेगी ? श्रीपालकुंवर का भुजबल, पराक्रम, अतुल वैन शरद ऋतु के मेघ के समान विफल, आईवर मात्र है ।
श्रीपालकुंवर - मंत्री महोदय ! धन्यवाद । आपका सुझाव ठीक है । गत वस्तु को लौटाने के चार उपाय है, साम', दाम, दण्ड और भेद । पहले सप्रेम राजा अजित से अपने अधिकार की मांग की जाय । उन्हें बिना सूचना दिये रक्त-पात, जनसंहार करना उचित नहीं। " उतावला सो बावला " । प्रधानमंत्री-कुंवरजी ! धन्यवाद | सच है, यदि शकर देने से ही पित्तशमन हो जाय तो, फिर भला कटु औषध को क्यों छुएं : उसी समय चतुरमुख दूत अपने स्वामी श्रीपालकुचर के आदेश से चम्यानगर की ओर प्रस्थान कर गया ।
१ साम--सप्रेम । दाम-भूमि का बटवारा आदि का प्रलोभन । दण्ड-डण्डे के बल लह झगड़ कर,
भेद--अपने शत्रु के घरमें आपसी मत-भेद कलह पैदा कर अपना काम निकालना |