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________________ हे मन ! चुप हो अत्र भोगों को चिन्ता दूर भगा दे । जिसमें चिता लेश नहीं है, उसने ध्यान लगा दे । हिन्दी अनुवाद सहित *** * *२२५५ आप से मिलने को बड़े उत्सुक हैं। कुंवरने कहा-द्वारपाल ! ठाकुर को अन्दर आने दो। एक साथ सैकड़ों मनुष्य जय सिद्धचक्र ! जय सिद्धचक्र !! का नारा लगाते हुए, शिविर में आए । आज वर्षों के बाद अपने साथी सात सौ कुष्टियों को देख श्रीपालकुंवर का हृदय पुलकित हो उठा । उन्होंने " जय सिद्धचक्र !" कह कर उनका स्वागत किया। श्रीपालकुवर-ठाकुर ! आज आप लोगों से मिलकर मुझे अति प्रसन्नता हुई। अब आप लोगों का स्वास्थ्क कैसे है ? बूढ़े ठाकुरने अपने साथियों की अनुमति ले बड़ी नम्रता से कहा, राणाजी! हम लोग राजमाता भगवती मयणासुन्दरी के हृदय से बड़े आभारी हैं, इनकी परम कृपा से हमें नवजीवन मिला | आपने हम पर श्रीसिद्धचक्र का प्रक्षालन जल छिटका है, तब से हम बड़े स्वस्थ और प्रसन्न हैं। आनंद की खोज:-श्रीपालकुंवर ने हंस कर कहा- देवि ! सत्य है। इन लोगों के मुंह पर स्पष्ट लाली और प्रसन्नता झलक रही है। मयणासुन्दरी–नाथ ! स्वास्थ्य और प्रसन्नता साध्य नहीं साधन हैं। सम्यग्दृष्टि मानव के हृदय में, इनका कोई मूल्य नहीं। ठाकुर----माताजी ! सम्यग्दृष्टि किसे कहते हैं ? मयणासुन्दरी-ठाकुर ! " आनन्द की खोज अपनी आत्मा में करो"। यह मानव जीवन के अभ्युदय का सत्य और सरल मागे है । इसी का नाम तो सम्यग्दृष्टि है । भौतिक सुख की लालसा में भटकने वाले व्यक्ति को मिथ्यादृष्टि कहते हैं। ठाकुरने मयणासुंदरी से कहा-माताजी ! धन्यवाद । आज हमें एक यह नया पाठ मिला । सचमुच बाहर. की चमक-दमक में सुख नहीं सुखाभास है। श्रीपालकुवर ने प्रधान मंत्री मतिसागर और अपने साथियों की तथा निकट के संबंधियों की सद्भावना, उन के आदर्श विचार देख, उन्हें सादर अपनी राजसभा में राणा, उमराव, प्रधानमंत्री, कामदार आदि उच्च पदों पर नियुक्त कर दिया । सभी लोग बड़ी श्रद्धा, भक्ति और सचाई के साथ श्रीपालकुंवर की सेवा करने लगे। श्रीमान उपाध्याय यशोविजयजी कहते हैं कि यह श्रीपाल-रास के चौथे खण्ड की दूसरी ढाल संपूर्ण हुई। श्रीसिद्धचक्र की सविधि-आराधना करने वाले पाठक और श्रोतागण को सहज ही मान-सम्मान और सुयश की प्राप्ति होती है । दोहा मति सागर कहे पितृ पदे, उवियो बालपण जेण । उठावियो तो तुज अरि, ते सही दित्त अमेण ॥१॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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