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हे ! चेतन चित्त जान सच, सुख नाहीं जग माही । चाहे जितना दौड जगत् में, सुष पावेगा नाही। हिन्दी अनुवाद सहित -*- *-
RREER २५३ हो जो एहवा बोली बोल, सुरसुन्दरीये उपाइयो हो लाल । हो जी जे आनन्द न तेह, नाटक शत के पण कियो हो लाल ॥१८॥ हो जी श्रीपाले बड़वेग, हवे अरिदमन अणावियो हो लाल । हो जो सुरसुन्दरी तसु दीध, बहु ऋद्ध बोलावियो हो लाल ॥१९॥ हो जी ते दंपती श्रीपाल, एगण! ने मु पसारले हो लाल । हो जी पामे समकिन शुद्धि, अध्यवसाये अति भलो हो लाल ॥२०॥ हो जी कुष्टी पुरुष शत सात, मयणा पणे लही दया हो लाल | हो जी आराधी जिन धर्म, निरोगी सघला थया हो लाल ॥२१॥ हो जो ते पग नृप श्रीपाल, प्रणमें बहुले प्रेमसुं ही लाल | हो जी राणिम दिये नृप तास, बदन कमल नित उलस्यु हो लाल ||२२|| हो जी आवी नमे नृप पाय, मतिसागर पण मंत्रवो हो लाल । हो जी पूरव परे नर नाह, तेह अमात्य कियो कवि हो लाल ॥२३॥ हो जी ससरा साला भूप, माउल बाजा पग घणां हो लाल । हो जी तेहने दिये बहुमान, नृप आदरनी नहीं मणा हो लाल ॥२४॥ हो जो भाल मिलिन कर पद्म, सवि सेवे श्रीपालने हो लाल । हो जी इक दिन विनवे मंत्री, मतिसागर भूपालने हो लाल ॥२५॥ हो जी चौथे खण्डे दाल, बोजी हुई सोहामणी हो लाल । हो जी गुण गातां सिद्धचक्र, जस कीर्ति वाधे घणो हो लाल ॥२६॥
विधि के लेख :-नारी एक रत्न है । इस की वाणी और भू-भंग में एक अनूठा आकर्षण, मोहिनीमंत्र हैं | सुरसुन्दरी के शब्द सुन उनके परिवार के तन में बिजली दौड़ गई । वे दांतों तले अंगुली दे एकसाथ बोल उठे – ओह !! यह.......सु र... सु...द...री... है? महाराज प्रजापाल को अपने मुंहकी खाना पढ़ी | सचमुच मानव स्वयं अपना भाग्य निर्माता है। विधि के लेख मिटाये नहीं मिटते । आज का अद्भुत प्रत्यक्ष नाटक देख जनता की आँख खुल गई ।