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अरे ! यह कौन सुर सुंदरी हैं !! :-
श्रीपाल रास ' पृष्ठ-२५३
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(1) मयणासुंदरी-माताजी ! भय मानत्र का एक महा भयकर शव है। आप युद्ध की चिता न करे मिद्धचक्र के प्रभाव से अब मेरे प्राणनाथ दूर नहीं । पीछे खिड़की में से "माताजी प्रणाम '' कमलप्रभा सच मुच अपने पुत्र को द्वार पर खड़ा देख आनंद विभोर हो फूली न समाई । (२) फिर श्रीपाल अपनी मां
और मयासुदरी को साथ ले आकाश मार्ग से चुपचाप अपने डेरे पर आ गए । (४) राजसभा में एक नटी के मुंह से "कहाँ मालव कहां शस्त्रपुर" की ध्वनि सुन सब के कान खड़े गय अरे यह कौन सुरसुदरी है !!