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त्याग तो करते सभी, यह त्याग दैनिक कर्म सा । इक वस्तु देते एक लेते त्याग क्या ? जहां लालसा ॥ हिन्दी अनुवाद सहित 6% একং५१
अभिनेताओं ने प्रोत्साहन दिया, बहुत कुछ कहा-सुना फिर भी वह टस से मस न हुई । अन्त में जनता की असन्तुष्ट देख उसे विवश हो उठना पड़ा। उसके पैर लड़खड़ाए, अंतर आत्मा बोल उठी, " कर्म ही प्रधान है, मानव नहीं । भाग्य एक रुई लपेटी आग है। उसने दो तीन सांस जोर से लीं। बर बस उसके हृदय के तार झन-झना उठे :
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कहां मालव, कहां शंखपुर, कहां बब्बर कहा नट्ट | सुन्दर नाचे तव बारणे, देखो तात ! प्रकट |
अभिनेत्री के शब्द सुन प्रजापाल के कान खड़े हो गये, कुंवर भी मौन थे, उन्हें क्या पता कि स्वयं साली साथ मेरे साथ हैं ! सच है " मान किसी का रहा जग में, समझ समझ नादान " I
आज प्रत्यक्ष सुरसुन्दरी को दी सौन्दरी को गोद में छटपटाते देख प्रजापाल की कायापलट हो गई। वे मान गये कि राजकुमारी मयणासुन्दरी का ही सिद्धान्त अटल है । मानव की दौड़ कहां तक ? कर्म को शर्म नहीं ।
प्रजापालः - बेटी सुरसुन्दरी ! मैं कई दिनों से तुम्हें शेखपुरी की पट्टरानी के रूप में देखने को बड़ा उत्सुक था, किन्तु आज प्रत्यक्ष तुम्हारी करुण दशा देख मेरा सिर चकरा रहा है ।
सुरसुन्दरी पिताजी ! कुछ न पूछो, यही जी चाहता था कि कहीं जाके डूब मरूं । सचमुच आज मुझे कुल की मर्यादा भंग और मयणासुन्दरी के उपहास का प्रत्यक्ष कटु फल मिले बिना न रहा । मैंने जिनके चरणों में अपना जीवन समर्पण किया था, वे, ही प्राणनाथ नगर के बाहर लुटेरों से अपने प्राण बचा कर, मुझे विपत्ति के मुंह में ढकेल ही नौ दो ग्यारह हो गये । पश्चात् मैं नेपाल में एक सार्थवाह ( व्यापारी) के यहां बिकी, वहां भी चैन कहां ! उसने भी लोभवश मुझे घुमा फिरा कर बच्चरकुल में नगर के एक चौराहे पर एक, दो, तीन कर ही दी । वह मैं एक वेश्या के पल्ले पड़ अभिनेत्री बनी, उसके बाद कर्मने मुझे रानी मदनसेना के दहेज में दे, घर-घर नाच नचाया |
हो जी नाटक करता तास, आगे दिन केता गया हो लाल ।
हो जी देखो आप कुटुम्ब, उलस्युं दुःख तुम हुई दया हो लाल || ११||
ह जी मयणां दुःख तव देखी, निज गुरु अत्तण मद कियो हो लाल । हो जी ते मयणा पति दास, भावे अब मुझ सल कियो हो लाल ||१२||