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अनुभव - रसिक ही जानते उस सौख्य के आनन्द को । निज संविदित वह तत्व है, जो काटता दुःख फंद को || २५० 196
66 भोपाल रास
( दोहा )
किहाँ मालव किहाँ शंखपुर, किहाँ बञ्चर किहाँ न । सुरसुन्दरी नचाविये, देवे दल विरह ||३||
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हो जी वचन सुणी तव तेह, जननी जनकादिक सवे हो लाल । 'हो जी चिते विस्मित चित्त, सुरसुंदरी किम संभवे हो लाल ||४|| हो जी जननी के विलग्ग, पूछी जनके रोक्ती हो लाल । हो जी लो कहे वृतांत जे ऋद्धि तुमे दीधी हती हो लाल ॥५॥ हो जी हुँ ते ऋद्धि समेत, शंखपुरीने परिसरे हो लाल । हो जी पहोंती मुहूरत हेत, नाथ सहित रही वाहिरे हो लाल ||६|| हो जी सुभट गया केई गेह, छो छे साथ निशा रही हो लाल । हो जी जामाता तुज नट्ठ, घाड़ी पड़ी निहाँ हूँ ग्रही हो लाल || || 'हो जी वेची मूल्ये घाड़ी, सुभटे देश नेपाल मां हो लाल | हो जी सारथ वाहे लीध, फले लख्युं जे भाल मां हो लाल || 4 || ही जी तेणे पण बब्बरकूल, महाकाल नगरे घरी हो लाल । हो जी हाटे वेची वेश, लेई शिखावी नटी करी हो लाल ॥९॥ 'हो जी नाटक प्रिय महाकाल, नृप नट पेटक सुं ग्रही हो लाल । हो जी विविध नचावीं दीघ, मयणसेना पतिने सही हो लाल ||१०
नेपाल में बिक गई:- आज उज्जयिनी में कच्चर कूल के कुशल कलाकारों की चर्चा सुनकर हजारों स्त्री-पुरुष झुण्ड के झुण्ड वड़े वेग से श्रीपालकुंवर के शिविर की ओर चले आ रहे थे । सूर्यास्त होते ही विशाल रंगभूमि में पैर घरने की जगह नहीं । सामने सिंहासन पर प्रजापाल और श्रीपालकुंवर बैठे थे ।
घण्टी बजी। एक सूत्रधार ने आ कर आज के अभिनय का परिचय दिया । पश्चात् रूम झुम रूम झुम करती अभिनेत्रियों ने साज-बाज के साथ प्रारंभिक मंगलाचरण करना चाहा किन्तु उस समय न मालूम क्यों एक प्रमुख नवयुवती मचल गई। उसे कई