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राज्य सुख त एक का वध एक है यहां, क्षणिक सुख की लालसा में भूल है कितनी अहा || कर ** श्रीपाल रास
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के प्रभाव से कमलप्रभा और मयणासुन्दरी को साथ ले वे शीघ्र ही चुपचाप अपने शिविर में लौट गये ।
सूर्योदय हुआ, शिव के चारों ओर शहनाइयाँ और नगाड़ों की ध्वनि से आकाश गूंज उठा (nor-street भैरव, प्रभातियां आलाप रहे थे । कमलप्रभा सिंहासन पर बैठीं थीं, सहसा उसकी आँखों के सामने एक अतीत का धुंधला चित्र खिंच गया । अरे ! एक दिन चपटी चून ( आते ) का भी ठीकाना न था, बेटे की दवा के लिये मुझे गांव गां भटकना पड़ा । किन्तु मेरे घर मयणा का पैर पड़ते ही, लीला लहर हो गई। वह ( मन ही मन ) धन्य है ! धन्य है !! बेटी तू साक्षात् लक्ष्मी हैं, तेरे ही मार्ग दर्शन से तो मेरा मुन्ना ( श्रीपाल ) फला फूला है। वह अपने बेटे का प्रत्यक्ष अनूठा ठाट-पाट देख फूली न समाई ।
श्रीपाल कुंवर -- पूज्य माताजी ! प्रणाम । कुंवर की नवीन स्त्रियों ने सास के पैर हुए |- बेटा, “ दूध पूत से आंगन भरा रहे बृढ़, सुहागन हो " कमलप्रभा ने अपनी नववधुओं को आशीर्वाद दिया । पश्चात् कुंवरने मां को बड़े प्रेम से अपने लंबे प्रवास का वर्णन सुनाकर कहा- माताजी ! में श्रीसद्गुरु की कृपा और महाप्रभाविक श्रीसिद्धचक्र के भजन से निहाल हो गया। अधिक क्या कहूँ ! मैं जहाँ भी गया वहाँ पौ बारह, पच्चीस ही था । कमलप्रभा बेटा ! यह सारा सारा श्रेय मयणा को है ।
श्रीपाल - प्रिये कहो ! अब तुम्हारे पिताश्री से किस तरह भेंट की जाय ? एक दिन मैंने उज्जयिनी (उज्जैन) छोड़ी थी उस समय उपर धरती और नीचे आकाश था ! सम्राट् प्रजापाल तुमारे साथ करने में जरा भी न चूके। फिर भीर भी वे रेख में मेख न मार सके । मयणासुन्दरी - प्राणनाथ ! सच है, समय निकाल जाता है, बात याद रह जाती है । में मानती हूं कि माता, पिता और बड़े भाई तीर्थ स्वरूप हैं, किन्तु इस समय पिताश्री शिक्षा के पात्र हैं। क्या अभिमान के टट्टु पर सवार हो, सिद्धान्त का अनादर करना कम है ? नहीं, एक महान् अपराध है। संभव है, किसी मानव से संयोगवश जिन आज्ञा के अनुशीलन का भंग भी हो जाय फिर भी वह अपेक्षाकृत क्षम्य है, किन्तु जानबूझ कर सिद्धान्तकी अवहेलना करना तो सचमुच ही अनंत संसार भववृद्धि का कारण है प्राणनाथ ! संतान का भी कर्तव्य है कि वह समय पर अपने पूज्य माता-पिता की सद्गति का लक्ष्य न भूले । मेरा आप से यही अनुरोध है कि आप कृपया मेरे पिताश्री को शीघ्र ही अपने कंधे पर एक कुल्हाड़ा रख कर आपके शिविर में उपस्थित होनेका संदेश भेज दें ।
हां नाथ ! आप कहीं इसका यह अर्थ न लगा लें कि आज मयणा के दिन-मान