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विषय-सुख-हित आज मानवा, क्या नहीं हैं कर रहे। मित्र बनता शत्रु पका,, बाप बेटे लड़ रहे ।। हिन्दी अनुवाद सहित CENTRA
O R२४५ वाणी में अमृत है। श्रीसिद्धचक्र के भजन बल से तेरा वचन टल नहीं सकता है । काज मैं निःसंदेह अपने लाल का चाँद सा मुखड़ा डेख फूली न समाउंगी । करवा रे वचन प्रियानुं साच, कहे रे श्रीपाल ते बार उघाडिये जी। कमलप्रभा कहे ए सुतनी वाणी, मयणां कहे जिनमत न मुधा हुये जी॥१२॥ उघाडियां वार नमे श्रीपाल, जननी नां चरण सरोज सुहंकर जी। प्रणमी रे दयिता विनय विशेष, बोलावे तेहने प्रेम मनोहरु जी ।।१३।। जननी रे आरोपी निज खंध, दयिता रे निज हाथ लेई रागसुं जी। पहाता रे हार प्रभावे गय, शिविर आवासे उलसित वेगसुं जी ।।१४।। बेसाड़ी रे भद्रासने नरनाथ, जननी प्रेमें इगी परे चीनवे जो । माताजी देखो ए फल तास, जपियां में नवपद जे सुगुरु दीया जी ॥१५|| बहुरो रे आठे लागी पाय, सामुने गथन प्रिया मगणा लणे जी । तेहनी रे शीस चड़ावी आशीष, मयगा रे आगे वात सकल भणे जी॥१६॥ पूछे रे मयणा ने श्रीपाल, ताहरो रे तात अणावू किण परे जी। सा कहे कंठे धरीय कुहाड़, आवे तो कोई आशातना नविकरे जी ॥१७॥ कहेवराव्यु दूत मूखे तिण वार, श्रीपाले ते राजा ने वयणवू जो । कोप्यो रे मालव राय ताम, मंत्री रे कहे नवि कीजे एवडु जी ॥१८॥ चोथे रे खंड पहिली ढाल, खण्ड साकर थी मीठी ए भणी जी। गाये जे नवपद सु-जस विलाख, कीरति वाधे जगमां तेह तणी जी ।।१९।।
मां के चरणों में:-आज श्रीपालकुवर प्रत्यक्ष अपनी मां का प्यार और पत्नी का हार्दिक प्रेम देख मंत्र-मुग्ध हो गये। मयणासुन्दरी के वचन को सार्थक करने का अवसर वे क्यों चुकने लगे । “एक पंथ दो काज" उन्होंने द्वार खट-खटाया। मां ! कमलप्रभा वर्षों के बाद अपने लाल की अमृत वाणी सुन हर्ष से उछल पड़ी | उसने दौड़कर द्वार खोला । पुत्र भी मां के चरणस्पर्श कर कृतार्थ हो गया। मां के प्यार के आगे, स्वर्ग भी तुच्छ है। मयणासुन्दरी अपने प्राणेश्वर की चरण धूली मस्तक पर चढ़ाकर फूली न समाई पश्चात् कुंवर कुछ समय विश्राम कर अपने दिव्याहार