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___संसार यह निःसार है, इक प्रशम इसमें सार है। प्रथम और विरागता ही, शांति का आधार है। २४४RIKSHATAK- श्रीपाल रास बीजा रे खोजे कोण प्रमाण, अनुभव जाग्यो मुझ ए वातनो जी । हुओ रे पूजानो अनुपम भाव, आज रे संध्याए जग तातनो जी ।।६।। तद्गत चित समय विधान, भावना वृद्धिभव भय अति घणों जो । विस्मय पुलक प्रमोद प्रधान, लक्षण ए छे अमृत क्रिया तणों जी ॥७॥ अमृतनो लेश लह्यो इक बार, बीजु रे औषध करवु नवि पड़े जी । अमृतक्रिया तिमलही इक वार, बीजा रे साधन विण शिव नवि अड़े जी॥ ॥ एहवो रे पूजा मां मुज भाव, आव्यो रे भाव्यो ध्यान सोहामणों जी । हजिय न माय मन आणंद, खिण खिण होये पुलक निकारणों जी ॥९॥ फरके रे वाम नयन उरोज, आज मिले छे वालिम माहरो जी । बीजु रे अमृत क्रिया सिद्धि रूप, तुस्त फले छे तिहां नवि आंतरो जी॥१०॥ कमलप्रभा कहे वत्स साच, ताहरी रे जीभे अमृत वसे सदा जी । ताहरूं रे वचन होशे सुप्रमाण, त्रिविध प्रत्यय छे ते साध्यो मुदाजी ॥११॥ ... अद्भुत आनंद का अनुभवः-मयणासुन्दरी माताजी ! भय मानव का भयंकर शत्रु है। इसे तो जड़ से निर्मल कर देना ही ठीक है। श्रीसिद्धचक्र-आराधक मानव से ग्रहपीड़ा, सर्पमय, समुद्र की कठिनाइयाँ, शत्रुओं का भयंकर आतंक, हाथी, सिंह, अग्नि प्रकोप, दरिद्रता, बन्धन और अनेक शारीरिक रोग सदा कोसों दूर रहते हैं। अनेक संकटों से छुटकारा पाने का एक ही अमृत का रामबाण उपाय है, सिद्धचक्र का नामस्मरण । फिर तो, चिंता का टोकरा सिरपर लादे लादे फिरना व्यर्थ है ।
आज मुझे सायंकाल श्रीसिद्धचक्र की दीपक पूजन करते समय एक ऐसे अनुपम अद्भुत आनन्द का अनुभव हुआ, कि मैं आनन्दविभोर हो गई। संभव है, यह हमारी । मनोकामना की सफलता और मुक्ति का ही संकेत अमृत' क्रिया हो। अब तक मुझे । हर्ष से रोमांच हो रहा है।
माताजी ! आज सुबह से मेरा बांया नेत्र और स्तन फड़क रहा है। इससे निश्चित ही मुझे आपके कुंबर के दर्शन होंगे। कमलामा ने कहा-मयणा ! धन्यवाद ! बेटा तेरी
१ अमृत क्रिया के लक्षण:-अनायास मन की स्थिरता, प्रसन्य चित्त, अनुपम अपूर्व आनन्द, भव-भय से मुक्ति की प्रबल कामना, रोमांच और एक विशिष्ट विचारधारा की जागृति का होना ही अमृत किया है ।।