________________
ये विषय अरिसम अन्त में, विषरूप परिणमते सदा। जो जाम कर भी है फसे, वे दुःख पाते सर्वदा ॥ हिन्दी अनुवाद सहित RRRRRRRRR* * २४३
सच है, पूरदास के आगे दर्पण, बहिरे के आगे सुरीला संगीत और भैस (मुख) के आगे भगवती बांचना ये तीतों नहीं के समान हैं। घनघोर श्याम घटाएं लाख उपाय करें फिर भी मगसेलिया तो सदा जल से दूर ही रहता है ।
चौथा खण्ड-पहली ढाल
(धन दिन घेला, धन घड़ी तेह) । रहियो रे आवास दुवार, वयणा सुणे श्रीपाल सुहामणो जी । कमलपभा रे कहे एम, मयणां प्रति मुज चित्त ए दुःख घणोंजी ॥१॥ विटी छे ए परचक्र, नगरी सघलोइ लोक हिल्लोलिया जी ।
शी गति होशे इण ठाम, सुतने सुख होजो बीजी घोलियो जी ॥२॥ घणां रे दिवस थया तास, वालिम तुज जे गयो देशांतरे जी । हजीयन आवि कोई शुद्भि, जीवे रे माता दुखणी किमनविमरे जी ॥३॥
कौन क्या कहता है ? :- उज्जयिनी में चारों ओर भारी हलचल मच गई । घर-घर यही एक चर्चा थी, कि अब प्रजापाल की कुशल नहीं । देखो ! दूर-दूर तक अपार सेना पड़ी है । न मालूम कर युद्ध छिड़ जाय । इधर कुंवर जब घर पहुंचे तो तो उस समय अंदर कोई बोल रहा था । वे चुपचार कान लगाकर सुनते रहे । देखें कौन क्या कहता है ?
मयणासुंदरी ने अपनी सास की पगचपी करते हुए कहा- माताजी ! आज आपका स्वाथ्य केसे है ? कमलप्रभा ने धीरे से कहा- कुछ नहीं बेटी ! पहाड़ सी चिन्ता सिर पर सवार है। नगर में जनता के प्राण मुट्टी में आ रहे हैं। अब हमारा क्या होगा? मुना घर पर है नहीं | आज तक उसका कुछ भी पता नहीं। भगवान उसको कुशल रखे । मेरा हृदय धक-धक कर रहा है । अब तो मेरे लाल (श्रीपाल) के बिना जीना बेकार है। मयणा रे बोले म करो खेद, म घशे रे भय मन मां परचक्रनों जी । नवपद ध्याने रे पाप पलाय, दुरित न चारो छे ग्रह वक्रनों जी | ४|| अरि करि सागर हरि ने व्याल, ज्वलन जलोदर बंधन भय सवे जा। जाय रे जपतां नवपद जाप, लहे रे संपत्ति इह भवे परभवे जी ॥५॥