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गई नमः
ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राय नमः भी अभिधान राजेन्द्र कोष रचयितर श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूगेश्वर सद्गुरुभ्योनमः
श्रीपाल-रास
(हिन्दी अनुवाद सहित) अनुवादक-श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री न्यायपिअवजी
चौथा-खण्ड (अनुवादकर्ता की ओर से)
मंगलाचरण
(१)
प्रिय पाठको । सिद्धचक्र का, प्रभाव देखा आपने । सिद्धचक्र की कर साधना, पाई विजय श्रीपाल ने ॥ जिसने न की प्रमाद वश, सिद्धचक्र की आराधना । फिर तो भला नर जन्म की यह, व्यर्थ है सब साधना ।।
सुर-तरु सम सिद्धचक्र की, करूं साधना भवपार है। चंदन करूं राजेन्द्र गुरुवर, यतीन्द्र का उपकार है।