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________________ निज देश में पूजित धनिक जन, विन्न तो सच ठौर ही। बान मानत्र को बनाना कुछ विलक्षण और ही ।। हिन्दी अनुवाद सहित R RCHESTRA२ २३९ डेरा दोधां सवि सैन्य नां, पहेलो हुओ रजनी जाम रे । वि. । जननी घर पहोंतो प्रेम सुं, नृप हार प्रभावे ताम रे ॥ वि. लो. ॥३०॥ दाल पूरी थई आठमी, पूरण हुभी चीजो खंड रे । वि. । हाय नवपद विधि आराधतां, जिन विनये सु-यश अखंड रे ।वि.ली. ॥३९॥ उज्जयिनी को और प्रयाण :-सम्यग्दृष्टि मानव योग की मित्रा', तारा बला, दीप्ता, स्थिरा, कान्ता, प्रभा और परा इन आठ दृष्टियों का मनन चिंतन कर वे त्याग और तय की ओर आगे बढ़ते हैं। पांच समिति, तीन गुप्ति इन आठ प्रवचन माताओं के साधक साधु-साध्वी का लक्ष समता की ओर ही रहता है । योगी बुद्धि के आठ गुण-शुश्रूषा, अवण, ग्रहण, धारण, उह, अपोह, अर्थ विज्ञान, तत्त्वज्ञान और आठ सिद्धियाँ अणिमा, महिमा, गिरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशिस्त्र प्राप्त होने पर भी वह शाश्वत मोक्ष को ही चाहता है । उसी प्रकार श्रीपालकुवर के पास स्व-भुजोपार्जित दल, बल, वैभव और आठ स्त्रियाँ थीं। फिर भी उनका हृदय अपनी माता कमलप्रभा और मयणासुन्दरी से मिलने को बड़ा ही उत्सुक था । वे उसी समय अपने ससुर सोपारक-नरेश से शीघ्र ही विदा ले उज्जयिनी की ओर चल पड़े । कूच के नगाड़े गड़गड़ाने लगे। मार्ग में महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मेवाड़, लाट और भोट आदि देशों के राजा-महाराजा, राजा श्रीपालकुबर का किसी चक्रवर्ती सा पराक्रम, अनगिनत हाथी, घोड़े, पायदल और उनका विपुल वैभव देख वे आश्चर्यचकित हो अनायास ही श्रीपालकुंचर के आधीन हो गये । भाग्यवान् श्रीपालकुवर जहां भी पहुंचे वहां के राजा-महाराजा और नागरिकों की ओर से उन्हें उपहार में इतना दल-बल, बंभव प्राप्त हुआ कि उस भार को शेषनाग बड़ी ही कठिनाई से सहन कर सके । यहाँ पर कवि की कल्पना है कि सृष्टिसर्जक ब्रह्माजी की चन्द्र और सूर्य यह दो आंखें हैं। वह अपने इन नेत्रों से बराबर टक-टकी लगाए देख रहे हैं कि कहीं श्रीपालकुंघर की टिड्ढी दल-सेना के भार से शेषनाग दब न जाए : नागराज के टस से मस होते ही, मेरे श्रम की इतिश्री होते देर न लगेगी । कमलप्रभा के द्वार पर :-मालव सम्राट् प्रजापाल को एक गुप्तचर से शात हुआ कि कोई एक अज्ञात व्यक्ति बड़े ही वेग से उज्जयिनि की ओर चला आ रहा है। उसके सैनिकों ने पहले से ही गढ़ के चारों ओर घेरा डाल दिया है । महाराज राजमहल की ऊंची अटारी १. इन आठ रष्टि का वर्णन जैन दृष्टिर योग और योगहष्टि समुच्च य में बड़ा ही सुन्दर है।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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