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झान की महिमा निराली ज्ञान अनुपम दीप है। ज्ञान लोचन के बिना ना अन्ध तत्त्व-प्रतीक है। २३८-
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RIE R श्रीपाल रास सात बार लग्न किये, फिर भी इतना आकर्षण, परवशता क्यों ? संभव है, भवान्तर का इस सुन्दरी के साथ मेरा कोई संबंध हो । ।
राजा-रानी ने श्रीपालकुंचर और तिलकसुन्दरी के मनोभाव को समझ कर उसी समय शुभ मुहूर्त में वहां निकट ही सोगारकपुर के विशाल उद्यान में बड़े ही समारोह के साथ उन दोनों का विवाह कर दिया। ढोल नगाड़े, शहनाइयों की ध्वनि से क्षण में जंगल में मंगल हो गया। चारों ओर आनन्द की एक लहर दौड़ गई । श्रीपालकुवर की तिलकसुन्दरी यह आठवीं रानी है । अड़ दिट्ठीं सहित पण विरती ने, जिम बंछे समकित वंत रे । वि.। अड़ प्रवचनमात सहित मुनि, समता ने जिम गुणवंत रे । वि.ली. ।।२१।। अड़ बुद्धि सहित पण सिद्धि ने, अड़ सिद्धि सहित पण मुक्ति रे। वि.। प्रिया आठ सहित पण प्रथम ने,नितध्यावे ते इण युक्ति रे । वि.ली.॥२२॥ उत्कंठित वित तेहशु, वली जननी ने नवमा हेन रे । वि. । श्रीपाल प्रपागे पूरियु, देवरावे ढका तेज रे ॥ वि. ली. ॥२३॥ हय गय रह भड मणि कंचणे, सत्य वत्थ बहु मूल रे । वि.। पग पग मेरी जे नृप वरे, तेहy चक्रवर्ती सम सूल रे ॥ वि.ली. ॥२४॥ तस सैन्य भरे भारित मही, अहिपति फण मणि गण प्रोत रे। वि.। तेणेगिरिपण जाणुनवि गिरिया, शशि-सूरनयण विधि जोत रे॥वि.ली. ॥२५॥ मरहट सोस्ट मेवाडना, वली लाट भोटना भूप रे । वि. । ते आव्यो संघला साधतो, मालव देशे रवि रुप रे || वि. ली. ॥२६॥ आगमन सुणी पर चक्रनु, चरमुख थीं मालवराय रे । वि. । भयभीत ते गढ़ने सज करे, तेहर्नु नवि तेज खमाय रे ॥वि.लो.॥२७॥ कप्पड़ चुप्पड़ तृण कण घणा, संग्रहे ते इंवण नीर रे । वि.। संनद्ध होय ते सुभट बड़ा, कायर कंपे नहीं धीर रे ॥ वि. ली. ॥२८॥ एम उज्जेणी हुई नगर ने, लोक संकीर्ण समीप रे । वि. । वोंटी श्रीपाल सुभटे तदा, जिम जलधि अंतर दीप रे । वि. ली. ॥२९॥