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ज्ञान का उपयोग यदि नित, सनत नहिं होता रहे । मानव फिर यह भटकता मृग-तृष्ण हो दुःख को सहे ।। हिन्दी अनुवाद सहित 3
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566 २३५ ते परिसर सैन्ये परिवर्यो, आवासे ते श्रीपाल रे । वि. | कहे भगति शक्ति नवि दाखवे, शुं सोपारक नरपाल रे ।। वि.लि. ॥७॥ कहे परधान नवि एहनो, अपराध अछे गुणवंत रे । वि. । नाम महसेन छे ए भली, तारा राणी मन कंतरे ॥ वि. ली. ॥८॥ पुत्री तस कुंखे अपनी, छे तिलकसुन्दरी नाम रे । वि. । ते तो त्रिभुवन तिलक समी बनी,हरे तिलोत्तमानुधाम रे॥वि.ली. ॥९॥ ते तो सृष्टि छे चतुर मदन तणी, अंगे जीत्या सवि उपमान रे । वि.। श्रुति जड़ जे ब्रह्मा तेहनी, रचना छे सकल समान रे ॥ वि. ली. ॥१०॥ दिह पीठे दंसी सा सुता, कीधा बहविध उपचार रे । वि.। मणि मंत्र औषध, बहु आणिया, पण नथयो गुण ते लगार रे। वि.ली.॥१॥ ते माटे दुःखे पीडियो, महसेन नृपति तस तात रे । वि. । नवि आव्यो इहां ए कारणे, मत गणजो बीजो घातरे ॥ वि. लो. ॥१२॥
दाह क्रिया करना ही शेष है :-राजा श्रीपाल - मंत्रीजी ! मैंने अब तक इतना प्रयास किया, किन्तु सोपारकपुर सा नगर एक न देखा। जान पड़ता है, यहां का राजा लोक-व्यवहार से अभी कोसों दूर है । मंत्री- महाराज ! यह तो असंभव है। हां! यहां के नरेश इस समय बेचारे बड़े संकट में हैं। कुंवर चौंक पड़े, संकट में हैं ! क्यों क्या हुआ ? महाराज, सोपारकपुर की महारानी तारा के एका-एक बेटी तिलकसुन्दरी है । वह राजकुमारी इतनी सुन्दर है कि, यदि उसे अन्धेरे घर में बिठा दे तो उजाला हो जाय । उसके सामने स्वर्ग की अप्सराएं रंभा, उर्वशी, तिलोत्तमा तो पानी भरती हैं । बूढ़े ब्रह्मा की कृति की तो हम एक-दूसरे से तुलना भी कर सकते हैं, किन्तु तिलकसुन्दरी तो सचमुच ही एक अनुपम वाला है । संभव है उसका निर्माण स्वयं कामदेव ने ही किया हो । केवल वह रूपवती ही नहीं किन्तु अनेक कलाओं में निपुण भी है। खेद है कि उस सुन्दरी को किसी विषले सर्प ने डस लिया है। अतः उसके पिता ने मंत्र और तंत्रादि अनेक उपचार किये फिर भी बह बच न सकी । अभी तो उसकी दाइक्रिया करना ही शेष है। इसीलिये तो राजा महसेन आपकी सेवा में उपस्थित न हो सके हैं। राजा कहे किहां छे दाखवो, तो कीजे तस लपगार रे । वि.। एम कही तुरगारूढे तिणे, दीठा जाता बहु नर नार रे ॥ चि. ली. ॥१३॥