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होय सामग्री सुमित, चाह उनकी न्यून हो । अतिथि का सत्कार हो, अरु पात्रदान अनून हो || २३४ % के या १०८ श्रीपाल रास
न मिला | विपुल संपत्ति के अधिपति मम्मण सेठ के पल्ले क्या पड़ा ? तेल और उड़द के दाने । कपिला दासी के गांठ का क्या लगता था ? कुछ भी नहीं। फिर भी वह अभागी बहती गंगा में हाथ न धो सकी ।
प्रिये ! इस क्षणभंगुर जीवन का क्या ठिकाना ? मानव तो नदी के किनारे का एक जर्जर वृक्ष है | आज है, कल नहीं। आँख मिचने के बाद कौन किसको याद करता है ? दो आँखों की तो शरम है। बच्चे होते भी तो क्या निहाल करते ? कपूत बेटे क्या नहीं करते हैं ? बूढ़ी माताएं इसकी साक्षी हैं । देवि ! तू व्यर्थ ही संकल्प-विकल्प न कर । क्या, हम सारी उमर वासना के दास ही बने रहेंगे ? हम धान्य के कीट तो एक नहीं अनेक सत्रों में बनते चले आ रहे हैं। अब तो हमें भोग में योग की ही शरण लेना है। यह श्रीपालकुंबर भी तो अपना ही है | इससे बढ़कर फिर हमें भाग्यवान और हमारे सुख-दुःख का साथी और कौन मिलेगा ? कोई नहीं । घर बैठे गंगा है। हम इसे ही क्यों न अपना बेटा मान लें ? रानी प्राणनाथ ! अंधा आंख ही तो चाहता है, फिर तो भला यह सोने में सुगन्ध है ।
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राज्याभिषेक :- सम्राट् वसुपाल से सर्वानुमत से शुभ मुहूर्त में बड़े ही ठाट-पाट से श्रीपालकुंवर का राज्याभिषेक कर उन्हें अपने राज्य की सारी सत्ता सौंप दी। फिर वे दोनों राजा-रानी बड़े आनन्द से अपना आत्म-साधन करने लगे ।
राजा श्रीपाल कुंवर :- पूज्य माता-पिता, वीर सामंत गण, और मान्यवर नागरिकों; मेरी इतनी योग्यता कहाँ कि मैं इस पद को निभा कर आप लोगों की कुछ सेवा कर सकूं। फिर भी आपने मेरे सिर पर कोंकण का राज्य मुकुट रख कर, मुझे सेवाका कए सुअवसर प्रदान किया है, अतः में आप लोगों की इस उदारता का हृदय से आभारी हूँ | धन्यवाद । तालियों की गड़गड़ाहट से सभा मंडप गूंज उठा। राजा-रजवाड़े श्रीपाल कुंवर को बहुमूल्य उपहार भेंट कर अपने स्थान पर लौट गए ।
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कई दिनों से कुंवर अपनी पूज्य माता कमलप्रभा के दर्शन करने के लिये बड़े ही ही उत्सुक थे। आज वे अपने धर्मपिता वसुपाल से अनुमति ले सूर्योदय होते ही शुभ मुहूर्त में उज्जैन की ओर चल दिये। मार्ग में उनके साथ हाथी, घोड़े, रथ, पालकी और दास-दासियों का ठाट-पाट देख अनेक राजा-रजवाड़ों के सिर झुकने लगे। वे सिद्धचक्र का प्रत्यक्ष प्रभाव देख मुग्ध हो जाते थे । सिद्धचक्र भगवान की जय हो ! जय हो !! कुंवर भी सप्रेम उनका उपहार स्वीकार कर आगे बढ़ते हुए, सोपारकपुर पहुंचे ।