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________________ देख अपना काच में मुख, कौन है क्या रूप है । यह अष्टविध अभिमान मानव, नहीं तव अनुरूप है ।। २३२%ARRRRRRISHARHARA श्रीपाल रास की आँख पाताल में बैठ गई | राधावेध होते ही तालियों की गड़ागड़ाहट से आकाश मुखरित हो उठा । धन्य है ! धन्य है ! ! युवक, मनो-निग्रह ही तो सफलसा का मूलमंत्र है। उसी समय वहां शुभ मुहूर्तमें बड़े समारोह के साथ श्रीपालकुंवर और जयसुन्दरी की भांवर पड़ गई। अग्नि ने साक्षी दी। दोनों हृदय एक हो गये। सम्राट पुरंदर ने अंपनी प्यारी बेटी को कन्यादान में बहुत-सा धन, हीरे मोती, घोड़े स्थ, दास-दासी और एक राजमहल दिया । वहां वे दोनों पति-पत्नी बड़े आनंद से रहने लगे। तीसरा खण्ड-आठवीं ढाल (चन्यो रे कुंवरजी रो सेहरो) हवे माउल नृप पेसिया, आव्या नर आणा का मरे । विनीत । लीलावन्त कुंवर भलो। कुंवरे पण निज सुन्दरी, तेड़ावी अधिके हेज रे ॥ वि. ली. ॥१॥ सैन्य मल्यु तिहाँ सामटुं, हय गय स्थ भड़ चतुरंग रे । वि. । तिण संसुत कंअर ते आवियो, ठाणाभिध-पुर अति चंग रे॥ वि.ली. ॥२॥ आणंदियो माउल नरपति, तस सिविर सुन्दर देखि रे । वि. । थापे सज श्रीपाल ने, करे विवि अभिषेक विशेष ॥ वि. ली. ॥३॥ सिंहासन बेटो सोहिये, वर हार किरीट विशाल रे । वि. । वर चामर छत्र शिरे धर्या, मुख कज अनुसरत मगल रे।। वि. ली. ॥४॥ सोले सामंते प्रणमिये, हय गय मणि मोनिये भेट रे । वि. । चतुरंगी सेनाए परवर्यो, चाले जननी नमवा नेट रे ॥ वि. ली. ॥५॥ गाम मे आवंतड़ो, प्रणमिती भूपे सु पवित रे । वि. । भेटि जंतो बहु भेटणे, सोपारय नगर हुँत रे ॥ वि. ली. ॥६॥ थाणा नगर का निमंत्रणः- सम्राट् वसुपाल के मंत्री मंडल ने श्रीपालकुंवर को प्रणाम करके कहा--श्रीमानजी ! सम्राट् गई दिनों से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं । हमारा आपसे सादर
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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