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________________ वह अर्थ है विद्या पढ़ी, जिससे ना होय विनीतता विद्या नहीं है मार्थ जग में, मेट दे अधिनीतता। हिन्दी अनुवाद सहित | KAREKAREKA SHANC२ २२९ सात पुत्र उपर मुता, जयसुन्दरी छे तास । रंभा लघु ऊंची गई, जोड़ी न आवे जास ॥३॥ चमत्कार को नमस्कार :-श्रीपालकुंवर का रूप-सौन्दर्य, सरल, विनीत स्वभाव और बोल-चाल की छटा देख, अंगभट्ट से रहा न गया | वह अपार भीड़ को चीरता हुआ बड़े वेग से आगे बढ़ा और उसने कुंवर की पीठ ठोककर कहा—धन्य है ! धन्य है!! सिद्ध पुरुष । मुझे भिक्षावृत्ति करते सफेदी आ गई। मैंने इस भूतल पर हजारों कोस का प्रयास किया किन्तु ऐसा चमत्कार कहीं न देखा । “एक जड़ लकड़ी का पुतला जिसके कर-स्पर्श मात्र से सैद्धान्तिक जटिल समस्या की शत प्रतिशत सही पूर्ति कर, राजकुमारी और उसकी पाँचों सखियों के मन की बात प्रकट कर दें। इस से बढ़कर और संसार में क्या होगा ! ! वीर युवक, नर-रत्न तुम युग युग जीओ, चिरायु हो । मेरा आप से एक नम्र अनुरोध है, कि आप एक बार यहाँ से शीघ्र ही कोल्लागपुर पधारें। श्रीपालकुंवर – विप्रदेव ! धन्यवाद ! आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है । कृपया कोल्लागपुर का कुछ परिचय देंगे ? ___ अंगभट्ट - वीर युवक ! मैं आपको परिचय ही नहीं, आशीर्वाद भी देता हूँ । वहाँ आपको निश्चित ही राधावेध का सु-यश मिलेगा । जयसुन्दरी का परिचय :-कोल्लागपुरमें सम्राट् पुरंदर राज्य करते हैं । उनकी पट्टरानी का नाम है विजया । राजमाता के सात पुत्र थे, किन्तु राजमाता की इच्छा थी कि एक दिन कोई हमारे द्वारपर आकर तोरण बांधे, तो मैं दिल खोल के अपने जमाई के लाह-प्यार करूं । किन्तु कन्या के बिना उसकी गोद सनी थी। बेचारी मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर के रह जाती। भगवद्भक्ति और प्रार्थना में अतुल बल और एक अनूठी दिव्य शक्ति है। हृदय से की हुई प्रार्थना कदापि निष्फल नहीं होती है। वयों की तपश्चर्या के बाद राजमाता को एक लड़की हुई । उसके कोमल दिव्य शरीर की कांति से राजमहल चमक उठा | उसका नाम है "जयसुन्दरी" | अब तो उसके विकसित नवयौवन देख, अप्सराओं भी को अपना सा मा मुंह लेकर स्वर्गलोक में जाना पड़ा । लवणिम रूप अलंकरी, ते देखी कहे भूप । ए सरीखो वर कुण हशे, पाठक ! कहो स्वरूप ॥॥ सो कहे इण भणतां कला, राधावेध स्वरूप | पूछयु ते में वरणव्यु, साधन ने अनुरूप ।।५।।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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