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देव गुरु श्रुत साधु जन अरु, पूज्य जन के विनय से । आरम-निष्ठा पुष्ट होती, विरति होती, सुनय से ।। २२८ - -*-*- *-*-*-* - श्रीपाल रास
पूरे कुंवर समस्या सारी, आनन्दित हुई नृपति कुमारी ।। वरे कुमार ते त्रिभुवन सार, गुणनिधान जीवन आधार सा. मो. ॥१५॥ पूतल मुख समस्या पूरावी, राजा प्रमुख जन मवि हुओ आधि । ए अचरिज तो कहिये न दीदु, जिमजोइये तिम लागे मी९ सा.मो.॥१६॥ राजा निज पुत्री परणावे, पंचसखी संजुन मन भावे । पाणिग्रहण मह सबलो कीधो, दान अतुल मनवांछित दीधो सा.मो.॥१७॥ सातमी ढाल ए त्रीजे खंडे. परण हुई गुण राग अखंडे । सिद्धचक्रनां गुण गाइजे, विनय सुजस सुख तो प्राइजे सा. मो. ॥१८॥
श्रृंगारसुन्दरी का विवाह :-आज दलपत्र नगर में समस्या-पूर्ति का संपन्न होना, एक चर्चा का विषय हो गया है। आम आता भी आश्चर्यचकित हो मान गई कि वास्तव में राजकुमारी के भाग खुल गए । महाराजा घरापाल स्वर्ग मर्त्य और पाताल में एक नहीं लाख चक्कर काटते फिर भी उन्हें ऐसा सुन्दर चमत्कारिक नवयुवक हूंढने पर भी नहीं मिलता । यह मानव नहीं देव है। सम्राट् भी श्रीपालकुंबर को देखकर फूले न समाते थे । उन्होंने उसी समय शुभ मुहूर्त में श्रीपाल कुवर के साथ बड़े ही समारोह, धाम-धूम से श्रृंगारसुन्दरी का विवाह कर उसे बहुमूल्य हाथी-घोड़े वस्त्रालंकारादि कन्यादान में दिये ।
राजकुमारी की पांचों सखियों ने भी अपना जीवनधन श्रीपालकुंवर के चरणों में समर्पण कर उनके गले में वरमाला डाल दी ।
पूज्य उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज कहते हैं, कि यह श्रीपाल रास के तीसरे खण्ड की सातवीं ढाल मधुर राग-रागिनी अलंकारिक शब्दों में संपूर्ण हुई । श्रीसिद्धचक्र के गुणगान करने से श्रोता और पाठकों को सुयश और विनय की प्राप्ति होती है ।
दोहा अंगभट्ट इण अवसरे, देखी कुंवर चरित्र । कहे मुणो एक माहरूं, वचन विचार पवित्र ॥१॥ कोल्लागपुरनो राजियो, अछे पुरंदर नाम । विजयाराणी तेहनी, लवणिम लीला धाम ||२||