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________________ यदि इष्ट हो सुख शान्ति वास्तव, सब प्रकार समृद्धिता । पर की निष्ठा छोड़ करके धरो दृष्टि-विशुचिता ॥ हिन्दी अनुवाद सहित 5- 51 9 57 २२७ विराजमान की । उन्होंने श्री शत्रुजय गिरनार आदि तीर्थों की सात बड़ी यात्राएं कीं। उसमें उनके साथ १८७४ रत्नजड़ित स्वर्ण के जिन-मन्दिर ७२ राणा, १८ हजार कोड़-पति साहूकार और अनेक श्रावक-श्राविकाएं थीं। धन्य है सम्राट कुमारपाल को। इसे ही तो जीवन कहते हैं। वस्तुपाल, तेजपाल ने :-(१) आबू तीर्थ (माउन्ट-आबू) पर अति सुन्दर अद्वितीय' मन्दिर बनवाए उसमें १२ क्रोड ५३ लाख रुपये लगाए | यस्तुपाल को शिल्प कला से इतना अनुराग था कि वे कला के विकास के लिये कलाकारों को पत्थर यड़ाई में जितना जितना भी बारीक से पारीक पत्थर का चूरा निकालते थे, उनको उतना ही बदले में स्वर्ण तोल कर परिश्रम देते थे। (२) एक बार वे सिद्धगिरिराज की यात्रा करने गये थे, तब वहां पर उन्होंने तीन लाख रुपये की बोली बोल कर तोरण बांधा । (४) एक लाख और पांच हजार नूतन जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा-अंजनशलाका करवाई। (५) नव सो चौरासी जैन उपाश्रय-पौषधशालाएं बनवाई । (६) खंभात आदि स्थानों पर ज्ञान भंडार बनवाए, उसमें ३९ लाख रुपये लगाए । (७) जैनागमों को स्वर्णाक्षर और काली श्याही से ताड़पत्र और कागजों पर लिखवाए। उसमें सात करोड़ सोना-मुहरें लगाई । (८) जनता के विश्राम के लिये स्थान-स्थान पर सात सौ विशाल धर्मशालाएं बनवाई। (९) उनकी दानशाला में प्रति दिन एक हजार स्त्री-पुरुष भोजन करते थे। (१०) उनके हाथ से श्रीसिद्धगिरि में अठारह क्रोड़, छन्नु लाख और गिरनारजी में १८ क्रोड़ तिरयासी लाख रुपये श्री-शुभ खाते में लगे हैं। (११) उन्होंने पांच सौ बहुमूल्य भगवान के समवसरण और पूज्यवर साधु-साध्वी के विराजने के पांच सौ हाथीदांत के सुन्दर सिंहासन बनवाये हैं। इतना ही नहीं, तेजपाल-वस्तुपाल की धर्मपलियाँ अनुपमा और ललितादेवी ने अपने आवश्यक खर्च में से संपत्ति की बचत कर आखू-देलवाड़ा में भगवान नेमिनाथजी के मन्दिर के अठारह लाख की लागत के दो बड़े सुन्दर गोखरे बनाए हैं। जो आज भी वे देराणी-जेठानी के गोखड़ों के नाम से, दर्शकों को अपना जीवन सफल बनाने का उद्बोधन दे रहे हैं । धन्य है धोलका के सम्राट् वीर धवल के मंत्रीश्वर वस्तुपाल और तेजपाल को। इसे ही तो जीवन कहते हैं। रे मानव ! तू अपनी अन्तर आत्मा से पूछ । तूने मनुष्य भव पाकर क्या किया? तिजोरी भरी : या परलोक सुधारा । धान्य का कीट न बन ! जीते जी कुछ परमार्थ कर यश प्राप्त कर ले । " यश जीयन, अपयश मरण " । जो यश लेकर गये हैं; जनता सूर्योदय से पहले ही उनका गुण-गान करती है । १. युद्ध लोगों का कहना है कि उस समय मित्री के ४ आने, सिलावट के दो आने, सुतार का १ आना और मजदूर के २ पसे रोज इतनी सस्ती मजदुरी थी।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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