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________________ आत्मश्रद्धा उड़ रही पर काना है जम रही । तब देश कैसे हो सुर्खा जब ध्येय ही है नहीं मही ।। २२६ -*--*-NCREKA REA श्रीपाल रास आज सत्ता और संपत्ति के मोह में भाई बहिन का, पिता पुत्र का, पति पत्नी का, नौकर अपने मालिक का, राजा प्रजा का गला घोंटने में जरा भी संकोच नहीं करता है । सत्ता के मोह में लाखों निरपराध प्राणियों को मौत के घाट उतार दिया गया, फिर भी मानव से सत्ता और संपत्ति कोसों दूर है : सलगर और शोषणवृत्ति से सत्ता और संपत्ति की प्राप्ति की आशा करना बालु रेती से तैल निकलना है। सत्ता और संपत्ति पुण्योदय के आधीन है । वास्तव में मनुष्य ने अगले जन्म में जैसा दान-पुण्य, सेवा भक्ति और परमार्थ किया है, उनको वैसा ही बल, बुद्धि, सुख सौभाग्य, ससा और संपत्ति की प्राप्ति होती है । स्वर्ग मर्त्य और पाताल में जहाँ भी देखो वहाँ पुण्यवान को देखते ही जनता का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। राजकुमारी श्रृंगारसुन्दरी अपनी पांचों सखियों की समस्या-पूर्ति सुन चकित और मोहित हो गई। : श्रृंगारसुन्दरी की समस्या :-" रवि पहेला उतगं" (पुतले ने कहा ) __जीवंता जग जस नहीं, जस विन कई जीवंत । से जस लइ आथम्या, रवि पहेला गंत ।।६।। रे मानव ! जीना भी एक कला है । कूड़-कपट, जन-शोषण और उदरपोपण करके जीना जीवन-जीवन नहीं । ऐसे तो कौआ भी मनुष्य की आंख बचा, पूड़ी जलेबी उड़ाकर आनंद से खा-खाकर जीवन भर...का...क्...रा करता रहता है । क्या आपको ऐसा जीवन पसंद है ? । जीवन इसे कहते हैं :-सम्राट् कुमारपाल ने असहाय श्रावक-श्राविकाओं के लिये प्रतिदिन एक हजार स्वर्ण मोहरें और श्रीसंघ की समुन्नति के लिये प्रति वर्ष एक क्रोड़ सोना मोहरें दान करते थे, ऐसे उन्होंने लगातार चौदह वर्ष में चौदह क्रोड़ स्वर्ण मोहरें दान की। राजा कुमारपाल ने लहियों से जैनागम की छे लाख, छत्तीस हजार प्रतियां लिखवाई, उनमें प्रत्येक आगम की स्वर्णाक्षरों से सात-सात प्रति लिखवाई थीं। सिद्ध-हेम व्याकरण की २१ प्रतियां लिखवाकर उन्हें नूतन २१ ज्ञान भंडार बनाकर जैनागमों के साथ स्थापित की । कुमारपाल ने अपने जीवन में १४४४ नूतन जिन-मन्दि बनवाए, १६०० जिन मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाए और उसने अपने पिता की स्मृति में छन्नु कोड़ स्वर्ण महर की लागत का त्रिभुवन विहार नाम का एक विशाल मन्दिर बनाकर उसमें एक सो पच्चीस अंगुल ऊँची अरिष्टरत्न से निर्मित श्री नेमिनाथ भगवान की सुन्दर प्रतिमा १. यह घटनाएं मुनिसुन्नत स्वामी के बाद की है।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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