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जीती आपने भूर जाओ। हिन्दो मनुवाद सहित IRRRRRRRRR RRR १९ ज्योतिष वैद्यक विधि जाणे, राग रंग रस रीत ललना ॥१३॥ देश. सोल कला पूरण शशि, करवा कला अभ्यास ललना । जगति भमे जस मुख देखी, चौसठ कला विलास ललना ॥१४॥ देश० मयणासुन्दरी मति अति भली, जाणे जिन सिदान्त ललना। स्थादाद तस मन वस्यो, अवर असत्य एकान्त ललना ॥१५|| देश. नय जाणे नव तत्वना पुद्गल गुण पर्याय ललना । कर्म ग्रंथ कण्ठे कर्या, समकित शुद्ध सुहाय ललना ॥१६) देश. सूत्र अर्थ संघयणना, प्रवचन सारोद्धार ललना । क्षेत्र विचार खरा धरे, एम अनेक विचार ललना ॥१७॥ देश. रास भलो श्रीपाल नो, तेहनी पहेली ढाल-ललना । विनय कहे श्रोता घरे, होजो मंगल माल ललना ॥१ । देश.
रूपसुन्दरी और मयणासुन्दरी गुरु कुल के शान्त वातावरण अमेद व्यवहार एवं शिक्षा की नीति-रीति से बड़ी सन्तुष्ट थीं। राज-प्रासाद को भूल उनका एक ही लक्ष्य था 'गुरु सेवा' विधा-अध्ययन और भगवान का भजन ।
माता-पिता से भी अधिक उत्तरदायित्व "गुरु" का है। गुरु की परिभाषा है कि जो बच्चों को किताबी ज्ञान न दे परन्तु अपने सदाचार, ज्ञान व्यवहार-कुशलता की उन पर ऐसी छाप डाले कि वे सब कुछ सीख जाय । विद्यार्थीयों को साक्षर बनाना ही गुरु का ध्येय नहीं होना चाहिए । यह तो ज्ञान प्राप्ति का एक साधन मात्र है। सच्मा अध्यापक वही है जो बच्चों की विशेष बुद्धि को जागृत कर दे,
सुरसुन्दरी ने भक्ति एवं सेवा सुश्रुषा से गुरुजी को प्रसन्न कर अल्प समय में ही खियों चित चौसठ-कला का ज्ञान प्राप्त कर लिया था । चौसठ कलाः
व्यवहारिक-४४ कलाएँ-(२) ध्यान, प्राणायम, आसन आदि की विधि । (२) हापो, घोडा, रथ मादि पलाना । (३) मिट्टी और कांच के बर्तनों को साफ रखना । (४) लकड़ी के समान पर रंग-रोगन सफाई करना । (५) धातु के बर्तनों को साफ करना और उन पर पालिश करना । (६) मित्र बनाना ।