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रद्ध आत्म श्रद्धा के बिना सुख खोजता पर वस्तु में । सुख प्राप्त होता है नहीं, परकीय हेय अवस्तु में ॥ २२४:56RSNEKHARASHRS ARRERA श्रीपाल राम
श्रीपालकुंबर अपने आगे खड़े हुए पंडितों की बोलचाल समस्यापूर्ति का रंग ढंग देखकर उसी साना लोप गोशिश यहाँ “शीधी अंशुही से घी नहीं निकलेगा " देखो ! क्या होता है। पंडिता ने कुंवर का क्रम आते ही उनके सामने अपनी समस्या रखी। श्रीपालकुचर समस्या सुनते ही खिल-खिलाकर हंस पड़े । यह दृश्य देख राजकुमारी श्रृंगारसुन्दरी की सखी कुछ सिटपिटा गई। उसके हृदय में शंका का भूत सवार हो गया । कहीं समस्या का पद बोलने में तो कुछ गड़बड़ी नहीं हुई ! अरे ! अब तक तो हमारी समस्याएं सुन-सुन कर लोगों के पैरों तले धरती खिसकने लगती थी, यदि किसी ने कुछ समस्या पूर्ति करने का साहस भी किया तो वह रोती सूरत केवल शब्दों का जाल बिछाकर थक जाता था । कुंवर ने हलकी मुस्कान के साथ कहा--पंडिते ! एक साधारणसी समस्याओं की पूर्ति के लिये आपको इतना कष्ट उठाना पड़ा? पंडिता--श्रीमानजी ! समस्या के एक छोटे से पद में दूसरे के मन के भावों का शब्द-चित्र खींच देना बच्चों का खेल नहीं है । श्रीपालकुंघरपंडिते! आपके मनोभाव तो यहाँ आपके सभामंडप के स्तंभ में लगा लकड़ी का पुतला ही प्रकट कर सकता है । पंडिताकी जबान बंद हो गई । वह आगे कुछ बोल न सकी। पंडिते! यदि आपको विश्वास न हो तो प्रत्यक्ष चमत्कार देख लो।
पंडिता की समस्या:-" मन वांछित फल होई" र अरिहंताई सु-नवह पय, नियमन धरे ज़ कोई ।
निच्छय तसु नर-सेहरह, मन वांछित फल होई ॥९॥ श्रीपालकुवर ने अपने इष्टदेव श्री सिद्धचक्र का स्मरण कर एक लकड़ी के पुतले के सिर पर हाथ रखा, तो पुतला सच-मुच ही बोलने लगा । उसने स्पष्ट कहा, कि पंडिने ! जो मानव अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन नवपदों का हृदय से ध्यान करते हैं, उनकी मनोकामनाएं निश्चित ही सफल होती हैं। विचक्षणा की समस्या :-" अबर म झंखो आल"
। अरिहंत देव सु-साधु गुरु, धम्मज दया विशाल ।
जपहु मंत्र नवकार तुम, अवर म झंखो आल ||२|| रे मानव ! तू व्यर्थ ही इधर उधर न भटक कर श्री महामंत्र नवकार की आराधना कर । नवकार मंत्र का आदि अक्षर "अ"के बोलने से सात सागरोपमः नवकार मंत्र का