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जब आते हैं. अन्छे दिन तब अच्छी बात सुहानी। नहीं तो समझाने पर भो, नहीं समझ में आती ।। हिन्दी अनुवाद सहित
२ २२३ प्रशंसा करते हैं, तो कोई उन्हें " देखी! ये तो बड़ो नखराली है" उलाहना देकर रह जाते हैं । दलपत नगर में बड़ो हल-चल मच गई। राजकुमारी के अद्भुत रूप सौंदर्य से आकर्षित हो चहां दूर-दूर के हजारों नवयुवक-विद्वान कलाकार चक्कर काट रहे हैं, किन्तु अब तक एक भी कोई ऐसा नवयुवक न दिखा, जो कि राजकुमारी की समस्यापूर्ति का सुयश प्राप्त कर सके | सच है, पराए मन की थाह पाना बच्चों का खेल नहीं है । सुणिय कुमार चमक्यो आबे, घर कहे हो मुझ हार प्रभावे । दलपत नगरजिहां नृप कन्या, तिहां पहोंतो सखी युत जिहां धन्यासामो।।१२ देखी कुंवर अमर सम तेह, चित चमकी कहे जो मुझ एही। पूरे समस्या तो हूं धन्य, पूरी प्रतिज्ञा होय कय पुण्य ।। सा. मो. ॥१३॥ पूछे कुंवर समस्या कोण, कंवरी संकेत राखी गौण ।। शीष कुंवर दिये कर पूरे, पुनल तेह रहे न अधूरे ।। सा. मो. ॥१४॥
समस्या पूर्ति :-श्रीपालकुंचर श्रृंगारसुन्दरी का परिचय सुन चकित हो गये । वे गुप्तचर को विदा दे अपने दिव्य हार के प्रभाव से सीधे दलपतनगर पहुंचे। वहां नगर के बाहर एक विशाल मंडप में दूर दूर के धुरंधर शास्त्री पंडितों का बड़ा जमघट मच रहा था । मार्ग में लौटते हुए मनुष्यों की सूरतें स्पष्ट बोल रही थीं, कि ये बेचारे समस्या पूर्ति में सफल न हो सके हैं । ___इधर श्रीपालकुचर बड़े उत्साह से आगे बढ़ते चले जा रहे थे । कुवर के मंडप में पैर रखते ही मंदिरों में शंखध्वनि और आरती के मंगल घंट बजने लगे | घोड़े बार-बार हिनहिना कर कह रहे थे,, कि अब राजकुमारी और उसकी सखियों की मनोकामना फलने में जरा भी विलंब नहीं है। कुंवर चुप-चाप समस्यापूरक लोगों की पंक्ति में खड़े थे। वहां उन्हें कौन जानता था कि आप चंपानगरी के राजकुमार हैं, किन्तु भाग्य भी तो कोई एक वस्तु है, वह " आग में बाग" लगा देती है । राजकुमारी शृंगारसुन्दरी तो इनको देखते ही मंत्र-मुग्ध हो गई। उसके अंग प्रत्यंग फड़कने लगे। वह मन ही मन अपने इष्टदेव से प्रार्थना करने लगी, कि हे प्रभो ! दयामय ! यदि मेरे पाप में किसी पुण्य का छींटा हो, तो आप हमारी समस्यापूर्ति का सुयश इसी (श्रीपाल ) नवयुक्क को प्रदान कर मुझे अनुगृहीत करें। भगवन् ! मैं कहीं शब्दों के मोह में लुट न जाऊं । शब्द-ज्ञान और प्रबल पुण्याई का आकर्षण दोनों भिन्न वस्तु हैं ।