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___ जय मन होता शांत आत्मा में परम शांत हो जाता । अह भात्र तज, स्वयं भाव मन, मिद्ध पद पाता। २२२ ASKA
A RENCOR-4- २ श्रीपाल रास ही शास्त्र स्वाध्याय किया । अब हमें निकट भविष्य में ही पराये घर जाना अनिवार्य है। अतः, अब हमें बहुत सोच समझ कर अपना पांव बढ़ाना चाहिये । किसी जनजान, अनुदार, अभिमानी, अशिक्षित, अस्वस्थ नवयुवक का साथ, काँटे और केले के वृक्ष के पड़ौस सा
सदा खटकता रहता है । दरिद्रता वनवास, मृत्यु, प्राणान्त क्षयरोग आदि कष्ट तो चार दिन __ में ही थक कर यहीं रह जाते हैं, किन्तु श्री जैन दर्शन और वीतराग धर्म से विमुख असंयमी पुद्गलानन्दी भार का साथ तो निश्चित ही दारूण दुःखदायक और अनंत संसारवर्धक है।
सोने की अंगूठी में रत्न ही शोभा देता है । वहाँ एक काच के टुकड़े का कोई मूल्य नहीं । दुर्लभ मानवभव त्याग, तप, विनय, शील, समभाव से सम्यग्दर्शन की आराधना के लिये है । स्व-पर का निश्चय और कषाय का मंद होना ही तो मानवभव की सफलता है वह जीवन, जीवन नहीं, जिसमें केवल भोग, उदर-पोषण और स्वार्थ-साधना की दुर्गय हो । उस घनघोर घटा से लाभ ही क्या जो कि सिर्फ गर्ज-गर्ज कर ही अपना रास्ता नापे ।
बहिनो! मेरा तो यही सिद्धान्त है कि अपना जीवन-धन उसी के हाथ सोपना जो कि जैन दर्शन का विशेषज्ञ, विनम्र, विवेकी विनीत और विचक्षण हो । स्वस्थ, समभावी, सत्साहित्य सर्जक, संगीत विशारद सु-देव' गुरु, धर्म उपासक किसी सुशील उदारहृदय नवयुवक के चरणों में जीवन समर्पण करने से प्रायः भविष्य में कलह कषाय की संभावना नहीं रहती है ।
पंडिते-बहिनजी ! आज तो आपने सच-मुच ही हमारे मन की बात कह दी। हम भी तो यही चाहती थीं, कि भात के कण के समान ही मानव को परख कर उससे विवाह करें । राजकुमारी शृंगारसुन्दरी पंडिता के गाल पर चुटकी लेकर हंस पड़ी । पंडिता! तू तो बड़ी चंट है । विचक्षणा, प्रगुणा, निपुणा और दक्षा ने भी पंडिता को खूब छकाया । राजकुरी-हाँ पंडिते । कण का क्या अर्थ है ? पंडिते-बाईजी ! हम किसी कविता के एक पद में अपनी समस्या (विचार) रखें । जो भी व्यक्ति उस कविता की शेष तीन पंक्ति और बनाकर जब हमें पूरी कविता सुनावेगा, तब हम उसी समय चटसे भांप जावेंगे कि यह मानव हमारा स्वधर्मी वीतराग धर्मउपासक है, या अन्य मतावलम्बी है।
राजकुमारी श्रृंगारसुन्दरी ने पंडिता की पीठ ठोककर कहा-सखी! आपकी यह युक्ति मुझे बड़ी पसन्द है । पंडिते ! अब मैं निश्चित उसको ही बरूंगी जो कि सही ढंग से मेरी समस्या की पादपूर्ति करेगा । आज से मेरी यह अटल प्रतिज्ञा है। उसी समय पांचों सखियों ने भी खड़े होकर एकस्वर से कहा-बाईजी ! हम भी तो आपके साथ हैं. साथ हैं !!
गुप्तचर - कुवरजी! राजकुमारी और उसकी पांचों सखियों की अटल प्रतिज्ञा के समाचार हे वेग से चारों ओर फैल गए । घर घर में यही एक चर्चा है । कोई उनकी