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________________ उपशम सुख का साधन उत्तम, शांत चिन्न रीजे । जनमक विद होने, हा निरंतर कीजे ।। हिन्दी अनुवाद सहित 61-62-9425** **R२ २२१ पंडिता विचक्षणा प्रगुणा नामे, निपुणा दक्षा सम परिणामे । तेहनी पांत्र सखी छे प्यारी, सहनी मति जिन धर्मे सारी॥सा० मो० ॥४|| ते आगल कहे कुंबरी साचं, आपणर्नु म होजो मन काचुं । सुख कारण जिन मतनी जाण, वर वखो बीजो अपमाण। सा० मो०॥५|| जाण अजाण तणो जे जग, केल कंथेरनो ते संयोग । व्याधि मृत्यु दारिद्र वनवास, अधिको कुमित्र तणो सहवास ॥सा०मो० ॥६॥ हेम मुद्राए अकीक न छाजे, श्यो जल धर जे फोकट गाजे । वर वरखो परखीने आप, जिम न होय कर्म कुजोड़ालाप ॥ सा० मो० ॥७॥ कहे पंडिता परनुं चित्त, भाव लखीजे सुणीय कवित्त । सीथें पाक सुभट आकारे, जिम जाणी जे शुद्ध प्रकारे ॥सामो० ॥८॥ कस्यि समस्या पद तुमे दाखो, जे पूरे ते चित्त मांहि राखो। इम निसुणी कहे कुंवरी तेह, वरूं समस्या पूरे जेह ॥ सा० मो० ॥९॥ तेह प्रसिद्धि सुणीने मलिया, बहू पंडित नर बुद्धे बलिया । पण मतिवेग तिहाँ नवि चाले, वायुवेगे नवि डुंगर हाले । सामो० ॥१०॥ पंच सखी युत ते नृप बेटी, चित्त परखे करी समस्या मोटों । सुणिय कहे जन केम पूरीजे, पर मन द्रह किम थाह लहीजे। स० मो०॥११॥ गुप्तचर-श्रीमान्जी ! शृंगारसुन्दरी की पांच सखियाँ हैं । उनके नाम हैं, पंडिता, विचक्षणा, प्रगुणा, निपुणा और दक्षा । राजकुमारी बड़े प्रेम से उनके साथ नित्य ही सत्संग शास्त्र साध्याय करती है। ते षट् द्रव्य', नवतत्त्व' आध्यात्मिक ग्रंथ और भेद-विज्ञान' का मनन चिंतन करते समय आनन्दविभोर हो उठती हैं। एक बार शृंगारसुन्दरी ने अपनी सखियों से कहा- प्रिय बहनों ! हमें भवोभव में श्री वीतराग धर्म और जैन की शरण हो अपन बचपन से साथ-साथ खेली कूदी, साथ-साथ (१) धर्मास्तिकाय, अघर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल | (२) जीव, अजीव, पाप, पुण्य, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष । (३) शरीर और बात्मा एक दूसरे से भिन्न है।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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