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मैं न देह देह न मेरा, भिन्न देह से मैं हूँ। मैं हूँ चेतन देह अचेतन आत्मानन्दी हूँ |
हिन्दी अनुवाद सहित
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6 ही से तो मुझे वरमाला भेंट की हैं इसमें चिढ़ने की बात ही क्या ? आप लाल पीली आँखें बताकर राजकुमारी को हथियाना चाहते हैं ? याद रखो ! पर नार ताकना महान अपराध हैं " तुम्हें अपनी भूल का प्रायश्चित करना ही होगा । मुंह पर मूंछ है तो देर न करो संभल जाओ । जरा इस कुबड़े के भी तो दो हाथ देख लो, मजा आ जायगा | कुत्रा म्यान से तलवार खींच कर मैदान में कूद पड़ा ।
उसके फुरतीले हाथ देख, राजकुमारों के छक्के छूट गये । उन्हें क्षण में ही छठी का दूध याद आ गया | बेचारे सभी राजकुजार एक के बाद ऐक नौ दो ग्यारह हो गये । कुबड़े की निर्भयता देख, जयघोष से सारा आकाश गूंज उठा । देव-देवांगनाओं ने सुगंधित फूलों की वृष्टि की। अब महाराज वज्रसेन से रहा न गया । उन्होंने बीच बचाव कर कुबड़े से कहा, कृपया अब हमें अधिक न परखियेगा | कुबड़े ने मुस्करा कर शीघ्र ही अपना रूप बदल दिया । फिर तो श्रीपालकुंवर का अनूठा दिव्य रूप-सौंदर्य देख, राजमहल में आनंद की एक लहर दौड़ गई । चारों ओर नगाढे, शहनाइयां बजने लगीं । वज्रसेन ने बड़े ही समारोह के साथ त्रैलोक्यसुन्दरी का विवाह कर उसे कन्यादान में विपुल संपत्ति, अनेक दासदासियां और एक अति सुन्दर कलापूर्ण भव्य राजमहल दिया। उस में वे भगवान विष्णु और लक्ष्मी के समान दोनों पति-पत्नी बड़े आनन्द से रहने लगे ।
श्रीमान् उपाध्याय यशोविजयजी महाराज कहते हैं कि यह श्रीपालरास के तीसरे खण्ड की हड्डी दाल संपूर्ण हुई । श्रीसिद्धचक्र की आराधना से घर-घर में आनंद मंगल होता है ।
दोहा
विलसे धवल अपार सुख, सोभागी सिरदार | पुण्य बले सवि संपजे, वंछित सुख निरधार ||१|| सामग्री कारज तणी, प्रापक कारण पंच | इष्ट हेतु पुण्यज बहुं मेले अवर प्रपंच ||२|| तिलकसुन्दरी श्रीपालनो, पुण्ये हुओ संबंध । हवे शृंगारसुन्दरा तणी, कहीशुं लाभ प्रबंध ॥३॥
मानव को सुख सौभाग्य और मन चाहे पदार्थों की प्राप्ति होना पुण्योदय के आधीन | भाग्यवान स्त्री-पुरुष पुण्योदय से ही तो अखण्ड सुख-सौभाग्य प्राप्त कर बड़े आनन्द से अपना जीवन बिताते हैं । श्री समवायांग सूत्र में सुख-सौभाग्य और मनोवांछित