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________________ बाहर के शत्रु को जीते, सो वह शूर नहीं है। अन्दर के क्रोधादि जीते, सच्चा वोर वही है। २१४RITESH**** **ॐ श्रीपाल रास तिहाँ प्रथम पक्ष आषाढनी, बोजी छ वरण मुहूते रे । शुभ बीज ते काल छे, पुण्यवन्तने हेतु आयत्न रे ॥जु०॥ त्रैलोक्यसुन्दरी का परिचय:- एक दिन किमी परदेशी युवक ने आ कर श्रीपालकुंबर से कहा--श्रीमानजी ! मैं कन्चनपुर से आ रहा हूं । कंचनपुर यहां से लगभग तीन सौ योजन (२४०० माईल) दूर है। वहां एक बड़े शूरवीर महान योद्धा महाराज वनसेन राज्य करते हैं । उनकी पट्टरानी का नाम है कंचनमाला । राजमाता का शरीर मालती के फूल सा सुकोमल, बड़ा सुन्दर है। उनके चार पुत्र और एक पुत्री हैं। उसका नाम है लोक्यसुन्दरी । जैसे वेद शास्त्रों पर उपनिषद की रचनाएं सोने में सुगन्ध हैं, तो बज्रसेन के चार पुत्रों पर त्रैलोक्यसुन्दरी का जन्म भी एक अति महत्वपूर्ण अद्भुत घटना है। सचमुच त्रैलोक्यसुन्दरी का जैसा नाम है, वैसा ही उसका अनोखा रूपसौंदर्य भी है। विधाता ने रंभा, उवर्शी, तिलोत्तमा, मेनका आदि अप्सराओं का निर्माण कर केवल अपनी कला को परिमार्जित ही किया है, किन्तु त्रैलोक्यसुन्दरी के नख-शिख अवयवों का सर्जन तो सृष्टि का एक अन्तिम उपहार है। जिस प्रकार योगी जन आत्मानुभूति के अनुपम आनन्द में लीन हो जाते हैं, उसी प्रकार मानव, त्रैलोक्यसुन्दरी के अद्भुत रुपसौंदर्य नख-शिख को निरख-निरख कर एक अनूठे आनन्द का अनुभव करते हैं। उनकी दृष्टि में संसार की सुन्दरियाँ नहीं के समान ज्ञात होती हैं । बज्ञसेन ने अपनी लाहिली बेटी के स्वयंवर के लिये एक अति सुन्दर विशाल सभामंडप की तैयारी की है। उस मंडप में स्थान-स्थान पर स्वर्ण की चल गुड़ियाए बड़ी ही आकर्षक हैं । वहाँ अतिथिसत्कार के लिये सुन्दर रत्नजड़ित सिंहासन, गादी गलीचे सजाए गये हैं। प्रतिभोज के लिये संचित अनराशि पहाड़ सी भली मालूम होती है। बिना भाग्य के ऐसी अद्भुत सुन्दरी हाथ नहीं लगती । देखो क्या होता ? उस चन्द्रमुखी, कमलनयनी, सुन्दरी के कल अषाढ वद दूज के लग्न हैं । एम निसुणी सोवन सांकलं, कंवरे तस दी, ताव रे । घरे जई ते कुवनाकृति धरी, तिहां पहोतो हार प्रभाव रे ॥जु०॥९॥ मंडपे पइमंतो वारियो, पोलियाने भूषण देई रे । तिहाँ पहोतो मणिमय पूतली, पासे बेठो सुख सेई रे ॥जु०॥१०॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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