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इन्द्रिय निग्रह शांत भाष बिन, मन निर्मल न होई । निर्मल मन बिन बोध तस्व का, कमा न पावे कोई ।। हिन्दी अनुवाद सहित KAKKARKAR२ २११
वामन वरियो जाणी नृपादिक दुःख धरे हो लाल, नृपादिक । ताम कुमार स्वभावचं रूप ते आदरे हा लाल, रूप० ॥२९॥ शशि रजनी हर गौरी हरि कमला जिश्यो हो लाल, हरि० । योग्य मेलावी जाणी सवि चित्त उल्लस्यो हो लाल, सवि० ॥ निज बेटी परणावी राजा भली परे हा लाल, राजा० । दिये हय गय धण कंत्रण पूरे तस घरे हो लाल, पूरे० ॥३०॥ पुण्य विशाल भुजाल तिहां लीला करे हो लाल, तिहां० । गुणसुंदरीनो साथ श्रीपाल ते सुख बरे हो लाल, श्रीपाल ॥ त्रीजे खंडे ढाल रसाल ते पांचमी हो लाल, रसाल० । पूरीए अनुकूल सुजन मन संक्रमी हो लाल, सुजन० ॥ सिद्धचक्रगुण गातां चित्त न कुण तणो हा लाल, चितः । हरषे वरसे अमिय ते विनय सुजश घणो हो लाल, विनय० ॥३१॥ नाच न आवे तो आंगन टेड़ा :--
अध्यक्षजी के आदेश से राजकुमारी गुणसुन्दरी ने अपनी बहुमूल्य वीणा कुबड़राम को सौंप दी। फिर तो वह ठुमक ठुमक पैर रख कूदने लगा । चौना तो ठहरा, उसके हर्ष का पार नहीं, किन्तु वीणा के स्वरों पर अंगुलियां नचाते ही उसका सिर ठनका । उसने अध्यक्षजी से कहा - श्रीमान्जी ! यह वीणा अशुद्ध है । कुबड़ाराम ( श्रीपालघर ) के टंकसाली शब्द सुन अध्यक्षजी चौंक पड़े। संगीतसभा में कानाफूसी होने लगी। राजकुमारी के बजाने की बहुमूल्य वीणा भी कहीं अशुद्ध हुई है ? कदापि नहीं। "नाच न आवे तो आंगन टेड़ा ।" कुबड़राम बड़ा निडर था, उसने अध्यक्षजी को चुप देख, उन्हें फिर ललकारा । श्रीमानजी : आप प्रत्यक्ष देख लें । वीणा के कल पुरजे खुलते ही कुबड़राम की जनता पर धाक जम गई । सचमुच बीन का तुंबा और दण्ड दोनों सदोष थे । अध्यक्षजी भी मान गये, "बहुरत्ना वसुन्धरा"। उन्होंने उसी समय एक नई वीणा मंगवाकर कुबड़राम को दी । फिर तो उसने संगीत-सभा पर ऐसी मोहिनी डाली कि उसकी राग-रागिनी सुन कलाकार मंत्रमुग्ध हो, नींद लेने लगे। कुबड़सम भी कहां कम थे ! उसने शीघ्र ही बेसुध कलाकारों के पगड़ी, टोपी आभूषणादि उतार उतार कर एक ढेर लगा दिया । पश्चात वीणा