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________________ जो विषयों की जान निरसता फिर भी भोगन चाहे । नर-नारी है मन्दबुद्धि वे, बिना पूछ गधा है॥ २१०% E 5 % ARMA-RRENC२ श्रीपाल रास ___ उसी समय कुबड़राम (श्रीपाल) भी वहां आ पहुंचे, किन्तु द्वारपालने उसे अन्दर जाने न दिया | वह समझ गया, उसने एक स्वर्ण कंकण द्वारपाल के हाथ में रखा । फिर तो द्वारपाल ने शीघ्र ही उसे अन्दर ले जाकर अध्यक्ष महोदय से कहा-" आप श्रीमान् अपनी पीन कला का परिवार केला नाहई हैं" कलाकारों ने कुबड़राम का रंग-रूप देख हंसते हुए कहा-भले पधारे !! राजकुमारी के भाग्य जागे । बह चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। सच है, “भरा सो झलके नहीं, झलके सो आधरा; घोड़ा सो भूके नहीं, भूके गधेरा !!" कुबड़राम (श्रीपाल) ने अपने इष्ट बल से ऐसा जादू किया कि राजकुमारी गुणसुन्दरी को वह साक्षात् श्रीपाल ही दिखाई दे रहा था। कुंबरी उसके कामदेव से अनूठे रुप सौंदर्य को देख मुग्ध हो गई । वह मन ही मन प्रार्थना करने लगी, कि हे प्रभो ! इस नवीन कलाकार को आप मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण करने का बल प्रदान कीजिये । यदि यह कलाकार बीन कला में पिछड़ गया, तो फिर मैं पर रहूँगी, न घाट की । कंवरी संकीतेण वीणा दिये तसु करे हो लाल, वीणा० । कहे कुमार अशुद्ध छे ए वीणा धुरें हो लाल, ए वीणा० ॥ वीण सगर्भ ने दाधो दण्ड गले ग्रा हो लाल, दण्ड० । तुंबड तेणे अशुद्ध पणुं में तस कह्यु हो लाल, पहुं० ॥२६॥ दाखी दोष समारी वीण ते आलवे हो लाल, वीण । होई प्रामनी मूछेना किंपिन को चवे हो लाल, किंपि० ।। सूता लोकनां लेइ मुकुट मुद्रामणी हो लाल, मुकुट० । वस्त्राभरण लेइ करी राशि ते अति घणी हो लाल, राशि ॥२७॥ जाग्या लोक अछेरु देखा एहवं हो लाल, देखी० । पूर्ण प्रतिज्ञा कुमारी चित्त हरखित थयु हो लाल, चिन० ॥ त्रिभुवनसार कुमार गले वरमालिका हो लाल, गले. । हवे ठवे निज माने धन्य ते बालिका हो लाल, धन्य० ॥२८॥ कंठे ठवे वस्माल तेहने कुंवरी हो लाल, तेहने । वीण नाद विनोद ते रोजी खरी हो लाल, ते रोखी० ॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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