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________________ सम आशाए तज देने से, फल ऐमा ना पाता। अपने हो विष वेलों का, मूल उखड़ जाता है। हिन्दी अनुवाद सहित NETRA NRITOR २०९ साचिंते मुज एह प्रतिज्ञा पूरशे हो लाल, प्रतिज्ञा | सफल जनम तो मानशुं दुर्जन झूरशे हो लाल, दुर्जन० ॥ जो एह थी नवि भांजशे मन- आंतरं हो लाल, मनमुं० । करी प्रतिज्ञा वयर वसाव्यु तो खरं हो लाल, वसाव्यु० ॥ २३॥ दाखे गुरु आदेशे निज वीणा कला हो लाल, निज० । जाम कुमार कुमार समा मद आकला हो लाल, समा० ॥ जाम कुमारी देखावे निज गुण चातुरी हो लाल, निज० । लीके भाख्यु अंतर ग्राम ने सुरपुरी हो लाल, ग्राम ॥२४॥ कुंधरी कला आगे हुई कुंवर तणी कला हो लाल, कुंवर० । चंद्र कला रवि आगे ते छाशने वाकला हो लाल, ते छाश० ॥ लोक प्रशंसा सांभली वामन आवियो हो लाल, वामन । कहे कुंण्डलपुर वासी भलो जन भावियो हो लाल, भलो० ॥२५॥ जनता चकित हो गई: मकरकेतु ने एक विराट संगीत सम्मेलन का आयोजन किया | आज उसमें कलाकारों के वार्षिक श्रमका अंतिम निर्णय है । परीक्षा-भवन का घंट बजते ही राजकुमारी गुणसुन्दरी बड़ी सज-धज के, भगवती वीणापाणी शारदा के समान अपने हाथों में पुस्तक, चीणा लिये सभा मंडप में आई। उसके अनूठे रूप सौंदर्य ने छात्रों में गुदगुदी पैदा कर दी। विद्वान् अध्यक्ष महोदय के आदेश से एक के बाद छात्र अपनी बीन पर अगुलियां नचाने लगे; किन्तु उन्हें सफलता न मिली । पश्चात् राजकुमारी ने अपनी बीन संभाली, उसकी सप्रमाण मधुर लहरी सुन जनता चकित हो गई । अध्यक्ष महोदय ने स्पष्ट शब्दों में कहा, कि सभा भवन में उपस्थित कलाकार राजकुमारों और राजकुमारी की श्रेष्ठ कला में आकाश-पाताल सा अंतर है । जैसे कि इन्द्र की नगरी अलकापुरी के सामने एक उजड़ गांव, सूर्य-चन्द्र के समाने तारे, मिष्टाम भोजन के बदले छाछ और याकुले । चारों तालियों की गड़गड़ाहट के साथ धन्यवाद की झड़ी लग गई, गुणसुंदरी की प्रशंसा होने लगी।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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