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जब तक आशा भोगों की है, योग हाथ न आवे मूर्ख दोड़ता दक्षिण मुख कर कहा हिमाचल पावे ||
*दया
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श्रीपाल राम
२०८६
जोरों से हंस पड़े
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दूसरे राजकुमार अ आगे बढ़कर
कुदराम " ( कुंवर ) से कहा नमस्ते ! आप कहाँ से आ रहे हैं? कुछड़राम- मैं, आपको पता नहीं, स्वयं मेरे पैर साक्षी दे रहे हैं । राजकुमार - आप यहाँ किनके अतिथि हैं ? कुबड़राम राजा का जमाई बनूंगा" । राजकुमार खिल खिलाकर जोरों हँस पड़े | हां ! हां ! राजकुमारी आपकी प्रतीक्षा कर रहीं हैं । कुछहराम की आँखें लाल हो गई । उसने कहा - याद रखो ! " गुरुकृपा दुर्लभ कछु नाहि " मैं एक दिन आप से अधिक अंक लेकर रहूंगा | कुबड़राम आगे चल पड़ा। वह पूछता, पूछता संगीतशाला में आया । उसने सविनय संगीताचार्यजी को प्रणाम कर, उसने बीनकला सीखने की प्रार्थना की। आचार्यश्री ने चश्मा उतारा, 14 वे 'कुबट्टराम" का रूप-रंग देख बड़े विचार में पड़ गये । गुरुजी को चुप देख " कुधगम " ने उसी समय एक बहुमूल्य तलवार गुरुजी को भेंट कर दी। फिर तो उन्हें प्रवेश मिलते जरा भी देर न लगी । गुरुजी ने उसी समय " शर्त विहाय " सुशीली बीणा कुबड़े को दे, वे उसे बड़े प्रेम से चीणा के स्वर ( सा, रे, ग, म, प, ध, नि, सा ) मूर्च्छना आदि बताने लगे । यह देख अन्य छात्र ईर्षा की आग से जल भुन कर तत्रा हो गये । वे कुबड़राम को टेढ़ी आँख से घूरने लगे । यदि आचार्य श्री शाला में न होते तो आज कुबड़राम की कुबड़ ठीकठाक होते देर न लगती ।
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मैं बड़ी दूर से चला आ रहा हू में बीन कला सीखने आया हूँ
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कुबड़राम कहाँ सीधे थे, वे भी शाला के छात्रों से होड़ लेने के लिये, वीणा के अंधा धुंध कान-मसकने लगे । बात की बात में बेचारी सुन्दर वीणा का कल्याण हो गया । शाला के सभी छात्र एक साथ ठहाका मारकर जोरों से हंस पड़े । वह यही तो चाहता था ।
हवे परीक्षा हेत सभा महोटी मली हो लाल, सभा० । चतुर संगीत विचक्षण बेठा मन रली हो लाल, बेठा० ॥ आवीं राजकुमारी कला गुण सरसती हो लाल, कला० । वीणा पुस्तक हाथ जे पस्तख सरसती हो लाल, जे पर० ॥ २१ ॥ दखानें दवार कुवज जब रोक्यो हो लाल, कुबज० । दधुं भूषण रत्न पछे नवीं टोकीयो हो लाल, पछे० ॥ आव्या कुंबरी पास इच्छा रूपी बड़ो हो लाल, इच्छा० । कुंवरी देखे सरूप बीजा सवि कूबड़ो हो लाल, बीजा० ॥ २२ ॥