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मछली पानी में ही रहती, फिर भी रहती प्यासी । ऐसा देख शोक होता, कुछ आती है हसी ।। हिन्दी अनुवाद सहित 4R -
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२०७ नगर प्रवेश करते समय कुंवर, एक "कुबड़राम" बन गये। उनका बेडोल सिर डरावना मुंह, लंबे दांत, बैठी नाक, चौड़े कान, खोखला पेट, सूके पैर, वामन देव, टेदी कुषह, लूले हाथ देख छोटे बच्चे डरने लगे। लड़के-लड़कियों को कुबड़राम, लू लू ! कुछड़खां ! लू लू ! ! कह कर उसे चिढ़ाने में बड़ा आनंद आता था। वे उसे कंकर मार मार कर अपने घरों में लिए जाते । ताली पीट पीट कर हंसने लगते । बेचारा कुरराम इधर-उधर देख चुपचाप आगे बढ़ जाता । वह धीरे धीरे एक के बाद एक मुहल्ले पार कर शिक्षण शिविर के पास जा पहुंचा। वहाँ उसे देखते ही कई राजकुमार अपनीअपनी बीन रख-रख कर, उस कुपदराम (श्रीपाल) को खिझाने लगे ।
आयो आवो जुहार पधारो वामणा हो लाल, पधारा । दीसा सुंदर रूप घj साहामणा हो लाल, घणुं० ॥ किहांथीं पधार्या राज कहा कुण कारणे लाल, कहो । केहने देशा माहत जई घर बारणे हो लाल, जई० ॥१७॥ कुज कहे अमे दूर थकी आव्या अहों हो लाल, थकी। हांसुं करतां वात तुम्हें सांची कही हो लाल, तुम्हें ० ॥ घोणा गुरुनी पास अमे पण साधशुं हो लाल, अमे० । करशे जो जगदीश तो तुमथी वाघशुं हो लाल, तो० ॥१८॥ विद्याचारज पास जई इम वीनवे हो लाल, जई. । वीणानो अभ्यास करावो मुज हवे हो लाल, करावा० ॥ खड़ग अमूविक एक कर्यु तम भेटणुं लाल, कयुः । तव हरख्या गुरु महात दिये तस अनि घणुं हो लाल, दिये ॥१९॥ वीणा एक अनूपम दीधो तस करे हो लाल, दीधी । देखाड़े स्वर नाद ठेकाणां आदरे हो लाल, ठेकाणां० ॥ त्रट त्रट तूटे तांत गमा जाए खसी हो लाल, गमा० । ते देखी विपरीत सभा सघली हंसी हो लाल, सभा० ॥२०॥