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________________ जुआ खे होत है, सुख संपत्ति को नाम । राजपाट नल को गयो पात्र गये वनवास | हिन्दी अनुवाद सहित २०५ अनेक कौतुक देखता । गुण सुन्दरी की घोषणा का दृश्य उनकी आँखों के सामने घूम रहा था । हा ! कुण्डलपुर आउसो माइल से कम नहीं। जाना भी तो कैसे ? पश्चात् उसी समय उनके विचारों में एक नई स्फूर्ति जाग उठी। अरे! मं व्यर्थ ही क्यों संकल्प-विकल्प करने लगा ? कोई चिन्ता नहीं । सिद्धचक्र व्रत में अनन्त शक्ति, अतुल चल है। इसी व्रत की आराधना से मैंने प्रत्यक्ष काल के गाल ( समुद्र ) से चच, नवजीवन पाया। मुझे पूर्ण श्रद्वा दृढ़ विश्वास है, कि निश्चित ही मेरी मनोकामना सफल होगी ! "" आश करो अरिहंत की दूजी आश निराश " । श्री पालकुंबर आयंबिल व्रत कर चुपचाप ध्यान में लीन हो गए । एक दिन विमलेश्वर देव अपने अवधिज्ञान से कुंदर का दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास और श्रीसिद्धचक्र व्रत की अटल श्रद्धा देख चकित हो गये । इस युवक को धन्य है ! धन्य है !! परम तारक श्री अरिहंतादि नवपद ( सिद्धचक्र ) की आराधना, पुनित श्रद्धान ही तो जीवन की सफलता है । बिमलेश्वर देव को बिना बुलाए खिंचकर श्रीपालकुंवर की सेवा में आना पड़ा। कुंवर तो श्रीसिद्धचक के ध्यान में लीन थे । देव ने उनको बड़ी नम्रता से अभिवादन ( प्रणाम ) कर कहा — श्रीमान्जी ! क्या आप कुण्डलपुर जाना चाहते हैं ? कुंवर की आँख खुली, ने मुस्कार कर रह गये । 1 ) देव ने उनके गले में एक दिव्य हार डालकर कहा - आप इस हार के प्रभाव से मन चाहा रूप और विष दूर कर सकेंगे। सहज ही कलाविद् वन आकाश मार्ग से दूर दूर का प्रवास कर सकेंगे। कुंवर की खुशी का पार नहीं । कुँबर ने, देव को धन्यवाद दे, उनसे उनका परिचय पूछा। देव – में सौधर्म देवलोक का श्रीसिद्धचक्र आराधक देव हूँ। मेरा नाम है विमलेश्वर । आज आपके दर्शन कर मेरे हर्ष का पार नहीं, मैं कृतकृत्य हुआ । खेद हैं कि मैं व्रत प्रत्याख्यान से वंचित हू । मनुष्य पर्याय में चिलादि तप के अभिमुख होना सोने में सुगंध हैं | नवपद ( सिद्धचक्र ) की आराधना कर अनेक जीवों ने परमपद पाया हैं। आप सिद्धचक्र को हृदय से न भुलाएं । फिर कुछ समय ठहर कर – अच्छा, समय पर मुझे अवश्य याद कहना एम कहीने देव ते निज धानक गयो हो लाल, ते निजः । कुंवर पड्यो सेज निचितो मन थयो हो लाल, निचितो ० ॥ जाग्यो जिसे प्रभात तिसे मन चिंतवे हो लाल, तिसे० । कुण्डलपुर नयर मझार जई बेसुं बेसुं हवे हो लाल, जई० ||१२||
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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