________________
__ बाबा तजि कीजिये, गुण संग्रह चित लाय । दूध रहित ना चिके, गौ आनो घंट बंधाय || २०४
*
** श्रीपाल रास आयो निज भानगम कुंबर मन चिंतने हो लाल, कुंवर० । नय रह्यं ते दूर तो किम जास्यां हवे हो लाल, तो किम० ॥ देत विधाता पांखतो माणस अडां हो लाल, तो माणस० । फरी फरी कोतुक जोत जुवे जिम सूअड़ा हो लाल, जुवे जिम० ॥७।। सिद्धचक्र मुज एह मनोरथ पुस्शे हो लाल, मनोरथ० । एहिज मुज आधार विघन सवि चूरशे हो लाल, विघन ॥ थिर करी मन वच काय रह्या इक ध्यानसँ हो लाल, रह्यो । तन्मय तत्पर चित्त थ तस ज्ञान सु हो लाल, थयु० ॥६॥ ततखिण साहम वासी देव ते आवियो ही लाल, देव ते । विमलेसर मणिहार, मनोहर लवियो हो लाल, मनोहर० ॥ थई घणो सुप्रसन्न कुंवर कंठे ठवे हो लाल, कुंवर० । तेह तणो कर जोड़ी महिमा वरणावे हो लाल, महिमा० ॥९॥ जेहवू वंछे रूप ते थाए ततखीणें हो लाल, ते थाए । ततखिणं वांछित ठाम जाये गयणांगणे हो लाल, जाये ॥
आवे विण अभ्यास कला जे चित्तधरे हो लाल, कला । विषना विषम विकार ते सघला संहरे हो लाल, ते सघला० ॥१०॥ सिद्धचक्र नो सेवक हुँ छं देवता हो लाल, हूँ छ । केई उद्धरिया धीर में एहने सेवतां हो लाल, एहने ॥ सिद्धचक्रनी भक्ति घणी मन धारजी हो लाल, घणी । मुजने कोईक काम पड़े संभारजो हो लाल, पड़े० ॥११॥ आप जाना चाहते हैं:
श्रीपालकुंवर बाग से सीधे राजमहल में आए, किन्तु वहाँ उनका मन न लगा। वे मन ही मन कहने लगे-विधाता मेरे पंख होते तो मैं भी तोता-मैना के समान दूर दूर के