SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मान होत है गुणन से, गुण शिन मान न होय । शुक सारी राखे सभी, काग न राखत कोय ।। हिन्दी अनुवाद सहित R RC HAIRCREKAKARISA२०३ गायो चारे गोवाल ते वीण वजाड़ता हो लाल, ते वीण । राजकुंवरी विवाह मनोरथ भावताँ हो लाल, मनास्थ० ॥ सूनां मूकी क्षेत्र मिले बहु करसणी हो लाल, मिले । सीखे वीण बजावण होंस हिये घणी हो लाल, होस० ॥५॥ तेह नयर मांही एहवं कौतुक थई रह्यु हो लाल, कोतुक० । दीठे बणे ते वात न जाये पण कयुं हो लाल, न लाये ॥ सुणी कुंवर ते वात हिये रीझ्यो घणु हो लाल, हियरे । सारथवाहने सार दीए बधामणुं हो लाल, दीये० ॥६॥ पागल बन गई: कुण्डलपुर में एक संगीताचार्य अच्छे चोटी के विद्वान हैं। वे अपनी ढलती अवस्था देख, मन ही मन घुला करते थे। उनके मुंह से एक ठपडी आह निकल कर रह जाती थी। "हाय ! मेरी बीन कला की यही इति श्री, हो...जा...य...गी, किन्तु गुणसुन्दरी की अभेद-घोषणा ने वीणा-चादन की मृत कला में, फिर से प्राण डाल दिये । आज इस कला का बड़े वेग से विकास हो रहा है । दूर दूर के सैकड़ों राजकुमार, अनेकों युवक सुबह से शाम तक आचार्यश्री का द्वार खट-खटाते रहते हैं। उन्हें प्रवेश मिलना भी एक समस्या है । अधिक क्या कहूँ, कुण्डलपुर की जनता राजकुमारी को पाने के लिये पागल बन गई है। श्रीमंत 'निर्धन' किसान, चरवाहे, व्यापारी, बच्चे बूढ़े सभी कला की साधना में रत हैं। ब्राह्मण, वैश्य, शूद्रों के घर आंगन हाट हवेलियां, वीणा के स्वर से झंकृत हैं। मासिक परीक्षा के सभय संगीत के आरोह-अवरोह, शुद्ध, विकृत, तीन, मुर्छनाएं आदि भेद-प्रभेद के प्रश्नों में कई विद्यार्थी लथड़ जाते हैं, किन्तु फिर भी वे हताश न हो, वासनावश अपने दूने उत्साह से अध्ययन कर रहे हैं। हमें प्रवास करते सफेदी आ गई, किन्तु ऐसी अद्भुत यात न देखी, न सुनी । श्रीपालकुंवर व्यापारी की बात सुन चकित हो गये। उन्होंने प्रसन्न हो उस व्यापारी को अच्छा पुरस्कार दे विदा दी ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy