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परत्रिया माता सम गिने, परधन धूली समान। अपने सम सब को गिने, यहो ज्ञान विज्ञान ॥ २०२REPRESEAR**** श्रीपाल रास अपना अनमोल जीवन-धन समर्पित कर देती है, तो जन्म भर उसका अनेक असह्य संकट पीछा नहीं छोड़ते हैं। पराये पल्ले पड़ कर, भगवान् ! भगवान ! ! करना व्यर्थ है ।"
व्यापारी ने कुंवर से कहा - गुगसुंदरी निश्चित ही बीन कला विजेता के चरणों में अपना जीवन-धन समर्पण कर देगी। यह उसकी हद प्रतिज्ञा है ।
तीसरा खण्ड-पांचवी ढाल
(तज-थारा मारा मोहला उपर मेह झरुखे बीजली ) तेह प्रतिज्ञा वात नयस्मां घर घरे हो लाल, नयरमां। पसरी लोक अनेक बनावे परें परें हो लाल, बनावे ॥ गजकुमार असंख्य ते शीखण सज्ज थ्या हो लाल, शाखण । लई वीणा साज ते गुरु पासे गया हो लाल, ते गुरु०॥१॥ त्रण ग्राम सुर सात के एकवीस मूर्छना हो लाल, के एक० । तान ओगणपचास धणी विध घोलना हो लाल, घणी० ॥ विद्याचारज एक सघावे शीखवे हो लाल, सधावे | करे अभ्यास जुवान ते उजम नवनवे हो लाल, उजम० ॥२॥ शास्त्र संगत विचक्षण देश विदेशनां हो लाल, देश. । करे समा मांहे वाद ते नाद विदेषनां हो लाल, ते नाद०॥ मास मास प्रति होय तिहां गुण पारिखा हो लाल, तिहां० । सुणतां कुंबरी वीण सवे पशु सारिखाँ हो लाल, सवे. ॥३॥ चहुटा माहे वीण बजावे वाणिया हो लाल, बजावे । न करे कोई व्यापार ते होंसी प्राणिया हो लाल, ते होंसी० ॥ इणी परे वर्ण अदार घरे घर ऑगणे हो लाल, घरो घर० । सघले मेडी माले वीणा रण रण-झणे हो लाल, के वीणा०॥४॥