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मातपिता गुरु को करत, जो आदर सत्कार । ते भाजन सुख सुयश के, जीवे वर्ष हजार ॥ २००5 ****
ASANARSARोपाम राम कुंघर- आप कहां से पधार रहे हैं ? यहां कुछ दिन ठहरेंगे? व्यापारी- मैं इस समय कांतिपुर से आ रहा हूँ। मुझे आगे कम्बोज (कंचु द्वीप) जाना है। कुचरअपने प्रवास के कोई विशेष समाचार हों तो कहिये ? व्यापारी-यहां से लगभग आठ सौ मील दूरी पर कुंडलपुर में महाराज मकरकेतु राज्य करते हैं। उनकी पट्टरानी का नाम कपूरतिलका है । उनके दो पुत्र, एक पुत्री हैं। पुत्री चौसठ कलाओं में बड़ी प्रवीण, रूप में रंभा के समान सुन्दर है, उनका नाम है गुणसुन्दरी |
राग रागिनी रूप स्वर, ताल तंत्र वितान । वीणा तस ब्रह्मा सुणे, थिर करी आठे कान ॥ ८॥ शास्त्र सुभाषित काव्य रस, वीणा नाद विनोद । चतुर मले जो चतुर ने, तो उपजे परमोद ॥९॥ डहेरी गायतणे गले, खटके जेम कुकट्ठ। मूरख सरसी गाठड़ो, पग पग हीयड़े हट्ट॥१०॥ जा रूठो गुणवंत ने, तो देजे दुःख पोठी। दव न देजे एक तु, साथ गमारा गोठी ॥११॥ रसिया सूं वासो नहीं, ते रसिया एक ताल । शुरी ने झाखर हुए, जिम विछड़ी तरु डाल ॥१२॥ उगती युवती जाणे नहीं, सूझे नहीं जस सोज। इत उत जोई जंगलो, जाणे आव्यो रोज ॥ १३ ॥ रोज तणुं मन रोझवी, न सके कोई सुजाण । नदी मांही निशदिन वसे, पलड़े नाहीं पाषाण ॥१४॥ मरम न जाणे माहिलो, चिन नहीं इकठोर । जिहां तिहां माथु घालतो, फरे हगडुं दार ॥ १५॥ वली चतुर शुं बोलतां, बोली इक दो वार । ते सहेली संसार मां, अवर एकज अवतार ॥ १६ ॥