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________________ महिमा लायक क्या गुण तेरे, क्या कृत्य अनुगम गर्व करे। किन पुण्य मिटा भय नरक को, क्या यम जीता निश्चित फिरे ॥ १९८ %951-55 -4 श्रीपाल राम एक दिन सेट अंधियारी रात में एक तेज कटार ले, वे राजमहल (कुंवर ) के द्वार पर गए। कुंवर सोए थे और द्वार अन्दर से बन्द था । के हाथ मलते रह गये । " विनाशकाले विपरीत बुद्धिः" उन्हें चैन कहाँ ? वे कोट पर चड़, खिड़की की राह, अन्दर जाने लगे, किन्तु उनका शरीर मोटा ताजा था, भय से पर लड़खड़ाते हो वे ध...म से धरती पर लोटने लगे। सेठ को पाप का प्रत्यक्ष फल मिलते देर न लगी । कटार ने उनके प्राण ले लिये । वे मर कर सातयों नरक में गए । कुंवर का जरा भी बाल बांका न हुआ ! सूर्योदय होते ही राजमहल में चारों ओर सनसनी फैल गई सेठ के शव को देख कर सब लोग धू धू करने लगे। मृत कारज तेहनां करे रे, कंवर मन धरे सोग रे चतुरनर, गुण तेहना संभार तो हो लाल । सोवन घणुं तपाविये रे, अग्रितणे संयोग रे चतुरनर, तोही रंग न पालटे हो लाल ॥३०॥ माल पांच से वहाण नो रे, सवि संभाली लीध रे चतुग्नर, लखमीनु लेखो नहीं हो लाल । मित्र त्रण जे सेठना रे, ते अधिकारी कीध रे चतुरनर, गुणनिधि उत्तम पद लहे हो लाल ॥३१॥ इन्द्रतणां सुख भोगवे रे, तिहाँ कुंवर श्रीपाल रे चतुरनर, मयणा त्रणे पखियों हो लाल । त्रीजे खंडे इम कही रे, विनये चौथी दाल रे चतुरनर, सिद्धचक्र महिमा फल्यो हो लाल ||३२।। सेउ चल बसे : धवलसेठ की दुर्दशा देख श्रीपालकुंवर का हृदय भर आया । हाय ! सेठ चल बसे । धन्य है। इनके साथ मैंने अनेक देश-विदेश देखे, देव-दर्शन किये, कनक-कामिनियां पाई | आज में अंतिम समय इनको प्रभु के दो नाम भी न सुना सका । कुचर की आंख से अश्रधारा बहने लगी। उन्होंने बड़े दुःख से सेठका अग्नि संस्कार किया। कुंवर चाहते तो धवलसेठ के जहाज और उनका विपुल धन सहज ही में पचा जाते, किन्तु उन्होंने बड़ी सचाई के साथ सेठ की पाई पाई, उनके तीनों सज्जन मित्रों के अधिकार में सौंप दी । बसुपाल और उनके कर्मचारी कुंवर की निलोभ वृत्ति, गुणानुराग देख मुग्ध हो गये । सच है, अग्निपरीक्षा में विरले ही खरे उतरते हैं ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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