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________________ दुष्कर्म निःशंक करे निदे, गुरुदेव जो आत्मबखान करे। समता धर करे उपेक्षा तम, माध्यस्थभाव है वही खरे । हिन्दी अनुवाद सहित SANSKRI SHNA १९७ वसुपाल को प्रसन्न मन देख पंडित ने कहा-राजन ! मैंने उसी दिन कहा था कि आप (श्रीपाल) मातंग (नट) नहीं, राज राजेश्वर हैं । देखा ! पत्रे (ज्योतिष) का चमत्कार | वसुपाल ने पंडित को बहुन धन दे निहाल कर दिया । श्रीपालकुंवर मदनसेना, मदनमंजूषा, और मदनमंजरी तीनों खियों के साथ राजमहल में जाकर श्री सिद्धचक्र की विशेष भक्ति करने लगे। कुंवर पूरखना परे रे, पाले मननी प्रीतरे चतुरनर, पासे सखे सेउने हो लाल । ते मनथी छंडे नहीं रे, दुर्जननी कुल रीत रे चतुरनर, जे जेहवा ते तेहवा हो लाल ॥२६॥ बेहु हाथ भूइ पडया रे, काज न एको सिद्ध रे चतुरनर, सेठ इस्युं मन चितले हो लाल । पान क्यो ढोला शकुं रे, एहवा निश्चय कापरे चतुरनर, एहने निज हाथे हणुं हो लाल ॥२७॥ कुंवर पोढ्यो छे जिहां रे, सातमी भूइए आप रे चतुरनर, लेई कटारी तिहां चड्यो हो लाल । पग लपट्यो हेठे पडयो रे, आवा पहोतुं पाप रे चतुरनर, मरी नरके गयो सातमी हो लाल ॥२८॥ लाक प्रभाते तिहां मिल्या रे, बाले धिक धिक वाण रे चतुरनर, स्वामी दाही ए थयो हा लाल | जेह कुंवर ने चितव्यु रे, आप लयुं निवाण रे चतुरनर, उग्र पाप तुरतज फले हो लाल ॥२९|| पाप का प्रत्यक्ष फल : थाणा नगर में चारों ओर घर घर चर्चा होने लगी। राजकुमारी मदनमंजरी का पति मनुष्य नहीं देव है । धन्य है, उसने दुष्ट धवलसेठ को, बुराई का बदला भलाई से दे, सदा के लिये अपना नाम अमर कर दिया। आज भी उसके साथ श्रीपालकुवर का वही अभेद, विशुद्ध व्यवहार है । धवलसेठ कुंवर को टेढ़ी आंख से देख रह रह कर कहते, हाय ! मेरे दोनों दाव खाली गये | नवजीवन मिला | फिर भी उनकी दुर्भावना न मिटी। वे खाना-पीना भूल गए, नयनों में नींद नहीं। पलंग पर पड़े-पड़े करवटें बदला करते । अन्त में उन्होंने निश्चय कर ही लिया, कि "खाना नहीं, ढोल देना" मैं कुंवर के प्राण ले कर ही रहूँगा | अब दूसरे के भरोसे काम न चलेगा ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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